Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अरिष्टनेमि को महादेवियों ने मनाया
५७९ कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककर
समस्त भारत का चक्रवर्ती सम्राट भी हो सकता है, फिर यह शान्त हो कर क्यों बैठा है ?"
__ “भाई ! जिस प्रकार वह बल में अप्रतिम है, उसी प्रकार भावों से भी अप्रतिम, गंभीर, प्रशांत और अलौकिक है। उसे न तो राज्य का लोभ है और न भोगों में रुचि है । यह तो योगी के समान निस्पृह लगता है"-बलदेवजी ने कहा।
देवों ने कहा-“अरिष्टनेमि कुमार, सर्वत्यागी महात्मा हो कर तीर्थंकर पद प्राप्त करेंगे। भगवान् नमिनाथजी ने कहा था कि--"मेरे बाद अरिष्टनेमि नाम के राजकुमार, कुमार अवस्था में ही प्रवजित हो कर तीर्थकर-पद प्राप्त करेंगे। वह भव्यात्मा यही है । इनके मन में ऐसो भावना जाग्रत नहीं होती। वे समय परिपक्व होते ही संसार त्याग कर निग्रंय बन जावेंगे।"
श्रीकृष्ण और बलदेवजी अन्तःपुर में चले गए।
अरिष्टनेमि को महादेवियों ने मनाया . माता-पिता श्री अरिष्टनेमि से विवाह करने का आग्रह करते, तो वे मौन रह कर टाल देते । जब आग्रह बढ़ा और माता ने कहा--"पुत्र ! तुम तो प्रशान्त हो, प्रशस्त हो
और अलौकिक आत्मा हो, परन्तु विवाह तो करना चाहिये । पूर्वकाल के तीर्थंकर भगवंत भी विवाहित-जीवन बिताने और पुत्रादि संतति का पालन करने के बाद प्रवजित हुए थे। यदि अपनी इच्छा से नहीं, तो हमारी प्रसन्नता--हमारे मनोरथ पूर्ण करने के लिए ही विवाह कर लो। हमारी यह किंचित् इच्छा भी पूरी नहीं करोगे ?"
__मातुश्री ! आप तो मोह में पड़ कर ऐसी इच्छा कर रही हैं । विवाह के परिणाम को नहीं देखती........
___ " नहीं पुत्र ! उपदेशमत दो । मेरे मनोरथ पूरे करो"--पुत्र को बीच में ही रोक कर माता शिवादेवी बोली।
--"आप मेरी बात सुनती ही नहीं। अच्छा, मैं आपकी आज्ञा की अवहेलना नहीं करता, परन्तु मैं लग्न उसी के साथ करूंगा, जो मुझे प्रिय लगेगी । मैं अपने योग्य पात्र को स्वयं चुन लूंगा। आपको यह चिन्ता छोड़ देनी चाहिये"--कुमार ने माता को अपनी भावना के अनुरूप गंभीर वचन कहे और माता सतुष्ट भी हो गई ।
श्रीकृष्ण श्री अरिष्टनेमि का विवाह करने के प्रयत्न में थे। शिवादेवी ने श्रीकृष्ण से भी कहा था और श्रीकृष्ण भी चाहते थे कि अरिष्टनेमि जैसी महान् आत्मा, कुछ वर्ष
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