Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कर चरित्र
"सारथि ! लौट चलो यहां से, सीधे भवन की ओर धरी रहने दो बारात को। चलो लोटो।"--
सारथि हक्का-बक्का रह गया और स्तब्ध रह कर वरराज के मुंह की बो: देखने लगा । पुनः आज्ञा हुई;--
" देखते क्या हो सारथि ! चलो, लौटाओ हाथी। मुझे विवाह ही नहीं करना है।"
सारथि अवज्ञा नहीं कर सका और गजराज की दिशा मोड़ कर लौटाने लगा। जब श्रीकृष्ण ने वरराज को रुक कर पशुओं को छुड़ाते देखा, तो उन्हें आश्चर्य नहीं हुआ । वे जानते थे कि अरिष्टनेमि इस हिंसा को सहन नहीं कर सकेंगे। यह स्वाभाविक है । उन्हें यह अच्छा ही लगा। पशुओं की मुक्ति से वे प्रसन्न ही हुए। किन्तु उनका लौटना उन्हें अखरा । वे तत्काल आगे आए और बोले;--
"बन्धु ! यह क्या कर रहे हो ? बारात में से लौटना उचित नहीं है । चलो, लग्न का समय नहीं चूकना चाहिए। विलम्ब मत करो। सारी बारात रुकी हुई हैं।"
“बन्धुवर ! मैंने आप सभी ज्येष्ठजनों की इच्छा के अधीन हो कर ही यह अरुचिकर कार्य स्वीकार किया था। मेरी इच्छा मोह-बन्धन में बंधने की बिलकुल नहीं है । अब मैं लौट ही गया हूं, तो मुझे रोकिये मत । मैं लग्न नहीं करूंगा.........
“अरे पुत्र ! यह क्या कर रहे हो ? हाथी क्यों मोड़ा"-समुद्रविजयजी और पीछे शिवादेवी मार्ग रोक कर आगे आई। उनके चेहरे की सारी प्रसन्नता लुप्त हो चुकी थी। वे आतंकित थे। उनके मुंह से बोल नहीं निकल रहे थे।
कुमार ने कहा
" माता-पिता ! मोह छोड़ों। आपके मोह ने ही यह सारा झंझट खड़ा किया है। जिस प्रकार ये हजारों पशु-पक्षो, बन्धन में पड़ कर छटपटा रहे थे और मुक्त हो कर प्रसन्न हुए, उसी प्रकार मैने भी आठ कर्मरूपी वन्धन में पड़ कर अनन्त दुःख भोगे । अनन्त-बार बन्धा, कटा और मरा । मैं बन्धनमुक्त होना चाहता हूँ और आप मुझे बन्धनों में विशेष जकड़ना चाहते हैं । नहीं, नही, मैं अब किसी भी बन्धन में बँधना नहीं चाहता । मुझ मुक्त होना है । मेरा हित बन्धन में नहीं, मुक्ति में है । आप अपने मोह को छोड़ों । निर्मोह होना ही सुख और शांति का परम एवं अक्षय निवास है । मैं मोह को नष्ट करने के लिए निग्रंथ-धर्म का आचरण करूंगा। यह मेरा अटल निश्चय है।"
माता-पिता जानते थे कि हमारा यह पुत्र, त्रिलोकपूज्य तीर्थकर हो कर भव्य-जीवों का उद्धार करेगा । गर्भ में आते समय चौदह महास्वप्न का फल ही उन्हें अपने पुत्र के
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