Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 630
________________ सन्देह-निवारण और पुत्र दर्शन #ရိုးရာစားဖ የተዋቀሩ आकृति वाले होंगे कि जिनकी समानता भारतवर्ष की किसी भी माता के पुत्र नहीं कर सकेंगे ।" किन्तु महात्मा का यह कथन असत्य हुआ । क्योंकि मेरे छह पुत्र तो मृत हुए । जब वे गर्भ से ही मृत जन्मे, तो उनका होना न होना समान ही हुआ । तपस्वी महात्मा का वचन असत्य नहीं होता, फिर मेरे लिए असत्य क्यों हुआ ? में अभी अरिहंत भगवान् अरिष्टने मजी के समीप जाऊँ और वन्दन नमस्कार कर के अपना सन्देह दूर करूँ ।" सन्देह - निवारण और पुत्र-दर्शन ६१७ देवकी इस प्रकार विचार कर के रथ में बैठ कर भ० नेमिनाथजी के स्थान पर पहुँची और वन्दन - नमस्कार कर के पर्युपासना करने लगी । भ० नेमिनाथजी ने पूछा- " देवकी देवी ! छहों अनगारों के निमित्त से तुम्हारे मन में सन्देह उत्पन्न हुआ कि तपस्वी महात्मा अतिमुक्त श्रमण की भविष्यवाणी असत्य हुई ?" "हां, प्रभु ! मैं इस सन्देह की निवृत्ति के लिए ही श्रीचरणों में उपस्थित हुई हूँ ।" " देवकी देवी ! वे छहों पुत्र तुम्हारे ही हैं और तुम्हारी ही कुक्षि से जन्मे हैं । किन्तु जन्म लेने के बाद हरिणैगमेषी देव द्वारा संहरित हो कर भद्दिलपुर में सुलसा के पास पहुँचते रहे और उसके मृतपुत्र तुम्हारे पास आते रहे । सुलसा की भक्ति से आकर्षित एवं कृपालु हो कर देव ने तुम दोनों का ऋतुकाल समान किया । तुम दोनों का गर्भधारण और प्रसव समकाल में हुआ "" Jain Education International देवकी का सन्देह दूर हुआ। वह भगवान् को वन्दन- नमस्कार कर के उन अनगारों के समीप आई और वन्दना कर के अत्यन्त वात्सल्यपूर्ण भावों से उन्हें एकटक देखने लगो । उसका मातृत्व जाग्रत हुआ, अंग विकसित हुए और पयोधर पयपूर्ण हो गए। वह बहुत देर तक उन्हें अनिमेष निरखतो रही । फिर वन्दना - नमस्कार कर के भगवान् समीप आई और वन्दना कर के अपने भवन में लौट आई । * हरिणंगमेषी निमित्त हुआ, किन्तु उपादान तीनों का काम कर रहा था । देवकी को पुत्र-वियोग होना था, सुलसा का मृत-वन्या होती हुई भी पुत्रवती होने का मनोरथ पूर्ण होना था और छहों का कंस के उपद्रव से बचना था । वे चरम शरीरी थे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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