Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंङ्कर चरित्र
उनकी महिमा की । दिव्य सुगन्धित जल, पाँच वर्ण के सुगन्धित पुष्पों और वस्त्रों की वर्षा की और वादिन्त्र तथा गीत से उन महर्षि की आराधना का गुणगान किया ।
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दूसरे दिन श्रीकृष्ण सपरिवार भगवान् को वन्दन करने चले । वे मस्त हाथी पर आरूढ़ थे । मार्ग में चलते हुए उन्होंने देखा कि एक अत्यन्त जर्जर-शरीरी वृद्ध है । वह ईंटों के बड़े भारी ढेर में से एक ईंट उठा कर डगमगाता हुआ अपने घर में जाता है, ईंट रख कर लौटता है और फिर एक ईंट ले कर घर में जाता है । श्रीकृष्ण ने ईंटों का विशाल ढेर और वृद्ध की जर्जर देह तथा कष्टपूर्ण कार्य देखा । उनके हृदय में वृद्ध पर अनुकम्पा उत्पन्न हुई। उन्होंने हाथी पर बैठे हुए ही राजमार्ग के निकट रहे ढेर में से एक ईंट उठाई और ले जा कर वृद्ध के घर में रख दी। श्रीकृष्ण को वृद्ध की सहायता करते देख कर, साथ रहे हुए मेवकों और अन्य लोगों ने भी वृद्ध की सहायता की और बात की बात में सारा ढेर उठा कर उसके घर में पहुँच गया ।
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श्रीकृष्ण की सवारी आगे बढ़ी । वे भगवान् अरिष्टनेमि के समीप पहुँचे । वन्दननमस्कार करने के बाद जब गजसुकुमाल अनगार दिखाई नहीं दिये, तो भगवान् से पूछा ;'भगवन् ! मेरे छोटे भाई गजसुकुमाल अनगार कहाँ है ? में उनको वन्दन करना चाहता हूँ ।"
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" कृष्ण ! गजसुकुमाल अनगार ने अपना प्रयोजन सिद्ध कर लिया है" -- भगवान् ने कहा ।
"भगवन् ! यह कैसे हुआ कर मुक्ति कैसे प्राप्त कर ली"
गजसुकुमाल अनगार ने एक रात में ही आत्मार्थ साध श्रीकृष्ण ने आश्चर्य सहित पूछा
"कृष्ण ! प्रव्रजित होने के पश्चात् अपरान्ह काल में गजसुकुमाल बनगार ने मुझे वन्दना की और कहा--' भगवन् ! आप आज्ञा प्रदान करें, तो में भिक्षु की बारहवीं प्रतिमा का आराधन करूँ ।' मैने अनुमति दी फिर वे महाकाल श्मशान में गये और विधिपूर्वक भिक्षु प्रतिमा धारण कर कायोत्सर्ग पूर्वक ध्यानस्थ खड़े हो गए। इसके बाद उधर से एक पुरुष : निकला । गजसुकुमाल अनगार को ध्यानस्थ देख कर वह क्रूद्ध हुआ और मिट्टी से
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त्रि.श. पु. चरित्रकार ने यहाँ भयवान् के उत्तर में 'सोमशर्मा ब्राह्मण द्वारा मुक्ति होना ' बतलाया । यह समझ में नहीं आता । अन्तण्ड सूत्र के उल्लेख में कहीं भी ऐसा नहीं है कि जिससे भगवान् ने नाम प्रकट किया हो । इस ग्रन्थ के बाये के लेख से भी यही स्पष्ट होता है कि भगवान् ने नाम नहीं बताया, यदि नाम बताते तो श्रीकृष्ण क्यों पूछते कि- " मैं उस बधिक वो कैसे पहिचानूंगा ?". नाम बताने का उल्लेख उचित नहीं है ।
अतएव
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