Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 663
________________ तीर्थङ्कर चरित्र ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका प्रकार उन्हें भोजन में बाधक बन कर इन्होंने अन्तराय-कर्म का बन्ध कर लिया । उसी के उदय से ये भिक्षा से वंचित रहते हैं।" भगवान् का निर्णय सुन कर ढंढण मुनिजी, अपने कर्म को नष्ट करने में विशेष तत्पर हो गए। उन्होंने भगवान के पास अभिग्रह लिया कि "आज से मैं आनी ही लब्धि (प्रभाव) से प्राप्त आहार ग्रहण करूँगा। दूसरे की लब्धि से उपलब्ध आहार नहीं खाऊँगा।" इस प्रकार अपने अभिग्रह का पालन करते और अलाभ-परीषह को जीतते हुए ढंढण मुनिराज शांतिपूर्वक विचरने लगे । एकबार श्रीकृष्ण ने भगवान् से पूछा; "भगवन् ! इन सभी मुनियों में कठोर एवं दुष्कर साधना करने वाले संत कौन भगवान् ने कहा--" यों तो संयम की कठोर साधना सभी संत करते हैं, किन्तु ढंढण मुनि सब में विशेष हैं। वे अलाभ-परीषह को शूर-वीरता के साथ शांतिपूर्वक सहन करते हैं।" श्रीकृष्ण, भगवान् को वन्दन कर के लौट रहे थे। मार्ग में उन्हें भिक्षार्थ घूमते हुए ढंढण मुनि दिखाई दिये। वे तत्काल हाथी पर से नीचे उतरे और ढंढण मुनि की भक्तिपूर्वक वन्दना की और चले गए। श्रीकृष्ण ने जब मुनिजी को वन्दना की, तब एक श्रेष्ठी देख रहा था। उसे विचार हुआ कि-'ये महात्मा उत्तम कोटि के हैं, तभी महाराजाधिराज ने हाथी पर से नीचे उतर कर वन्दना की।' मुनिजी भिक्षार्थ घूमते हुए उसके घर आये, तो उसने आदरपूर्वक मोदक बहराया ! मुनिजी भिक्षा ले कर भगवान् के पास आए और वन्दना कर के बोले--" भगवन् ! आज मुझे भिक्षा मिल गई। तो क्या मेरा अन्तराय-कर्म नष्ट हो गया ?" भगवान् ने कहा--"तुम्हारा अन्तराय-कर्म अभी उदयगत है। तुम्हें यह भिक्षा, कृष्ण के प्रभाव से मिली है । उनको वन्दना करते देख कर श्रेष्ठी प्रभावित हुआ और तुम्हें मोदक बहराया ।" भगवान् का निर्णय सुन कर ढंढण मुनि ने शांतिपूर्वक सोचा-"यह आहार मेरी लब्धि का नहीं है। मुझे इसे परठ देना चाहिए।" वे शुद्ध स्थंडिल-भूमि में गये और मोदक परठने लगे । भावना का वेग बढ़ा । पाप के कटु परिणाम का विचार करते वे शुक्लध्यान में प्रवेश कर गए । ध्यानाग्नि की तीव्रता में उनके घातीकर्म नष्ट हो गए। उन्होंने केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त कर लिया और भगवान् को वन्दना कर के केवलियों की परिषद् में बैठ गए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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