Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
जरदकुमार और द्वैपायन का वन-गमन
एकबार श्रीकृष्ण ने भ. नेमिनाथजी से पूछा ; भगवन् ! देवपुरी के समान इस द्वारिका का यादव कुल का और मेरा विनाश किस प्रकार होगा ? मेरी आयु, बिना किसी बाह्य निमित्त के पूरी होगी, या किसी के निमित्त से ? "
"शौर्यपुर के बाहर एक आश्रम में 'परासर' नाम के एक तपस्वी रहते हैं । उनके ' द्वैपायन' नामका पुत्र है । वह ब्रह्मचारी है और इन्द्रिय-विषयों का दमन करने वाला है । वह यादवों के स्नेह के कारण द्वारिका के समीप ही रहता है । किसी समय शाम्ब आदि यादवकुमार, मदिरा के मद में अन्ध बन कर द्वैपायनऋषि को निर्दयता से मारेंगे । क्रोध से जाज्वल्यमान बना हुआ द्वैपायन, यादवों सहित द्वारिका को जला कर भस्म करने का संकल्प करेगा और आयु पूर्ण कर के देव होगा । वह देव, द्वारिका को जला कर भस्म कर देगा । और तुम अपने भाई ' जराकुमार' के बाण से आयु पूर्ण करोगे ।"
"
उस सभा में अनेक यादव और जराकुमार भी उपस्थित थे । सब की कुदृष्टि जराकुमार पर पड़ी । जराकुमार भी अपने-आप को कुल घातक और कुलांगार अनुभव करने लगा । उसने सोचा- " में यहाँ से निकल कर वन में बहुत दूर चला जाऊँ, जिससे यह अनिष्ट टल जाय और मैं बन्धु-घात के महापाप से बच जाऊँ ।" उसने प्रभु को नमस्कार किया और धनुष-बाण ले कर वन में चला गया । द्वैपायनऋषि ने लोगों के मुँह से, भगवान् द्वारा बताये हुए भविष्य की बात जानी, तो वह भी चिन्ता में पड़ गया और अपने को द्वारिका - विनाश के पाप से बचाने के लिए आश्रम छोड़ कर दूर वन में
चला गया ।
श्रीकृष्ण ने नगर में ढिंढोरा पिटवा कर मदिरापान का सर्वथा निषेध करने की आज्ञा प्रसारित कर दी । यादवों और नागरिकों के पास जितनी मदिरा थी, वह सब ले जा कर कदम्ब वन की कादम्बरी नामक पर्वत - गुफा के निकट बने हुए कुण्डों में डाल दी । बलदेवजी का सारथी सिद्धार्थ, यादवों और द्वारिका का दुःखद भविष्य सुन कर संसार से विरक्त हो गया । उसने बलदेवजी से, दीक्षा ग्रहण करने की आज्ञा माँगी । बलदेवजी ने कहा;
"हे पवित्र ! हे बन्धु ! मेरे हृदय का मोह तुझे छोड़ना नहीं चाहता, परन्तु मैं अपने मोह को तुम्हारे आत्मोत्थान में बाधक बनाना नहीं चाहता । यदि तुम एक बात का वचन दो, तो मैं आज्ञा दे सकता हूँ । तुम संयम और ता की आराधना कर के मुक्ति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org