Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 672
________________ बलदेवजी का भातृ-मोह ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका मणि ले जाओ और पाण्डवों को दे कर सारा वृत्तांत सुना देला । वे तुम्हारी सहायता करेंग । अव तुम शीघ्र ही उलटे पाँव लौट जाओ, बलदाऊ जल ले कर आने ही वाले हैं। यदि उन्होंने तुम्हें देख लिया, तो जीवित नहीं छोड़ेंगे । जाओ हटो यहां से । मेरी ओर से सभी पाण्डवों और परिवार से क्षमा याचना करना ।" कृष्ण के अत्याग्रह ने जराकुमार को विवश कर दिया । वह उनके चरणों में से बाण खींच कर और कौस्तुभ-रत्न ले कर चल दिया । जराकुमार के जाने के बाद कृष्ण अरिहंत, सिद्ध, भगवान् नेमिनाथ आदि को नमस्कार कर भूमि पर सो गये और उन त्यागियों का स्मरण करने लगे, जिन्होंने राजसी भोग छ। ड़ कर प्रव्रज्या स्वीकार की। इस प्रकार धर्मभावना करते शरीर में तीव्रतम वेदना उठी और भावना में परिवर्तन आया। दुष्ट द्वैपायन पर उनके हृदय में रौद्र परिणाम आया“यदि वह दुष्ट मेरे सामने आ जाय, तो में अभी भी उसको उसको करणी का फल चखा दूं। मेरे कोप से कोई नही बच सकता। मैने जीवनभर किसी से हार नहीं खाई। वह नीच मेरी द्वारिका और मारे नगरवासियों को, मेर देखत नष्ट कर दे । ओ अधम ! आ, मेरे सामने आ..........आदि । रौद्रध्यान में देह त्याग कर वालुकाप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न हुए। श्रीकृष्ण ने कुमारपने १६ वर्ष, मांडलिक राजापने ५६ वर्ष. त्रिखण्ड के स्वामीपने ९२० वर्ष, यों कुल एक हजार वर्ष का माय भोगा। बलदेवजी का भातृ-मोह श्री बलदेवजी पानी लेने गये थे। बड़ी कठिनाई से उन्हें पानी मिला । उनके मन में उदासी छाई हुई थी । वे कमल के पत्र-पुट में पानी ले कर लोटने लगे, तो उन्हें अपशकुन होने लगे । वे शंका-कुशंका युक्त डगमगाते हुए पानी ले कर भाई के पास पहुंचे। उन्होंने देखा-कृष्ण सो रहे हैं । कुछ देर वे उनके जागने को प्रतीक्षा करते रहे । अन्त में उनका धीरज छूट गया। उन्होंने पुकाग--" वन्धु ! जागो। में पानी ले आया है।" दो-तान बार पुकारने पर भी जब कृष्ण नहीं बोले, तो उन्होंने उनका बोढ़ा हुआ पिताम्बर दीचा । जब उन्होंने भाई को संज्ञाशून्य और धायल देखा, तो हृदय में धसका लगा। वे मूच्छित हो कर, कटी हुई लता के समान, भूमि पर गिर पड़े। मूर्छा दूर होने पर वे दहाहे-“कोन है वह कापुरुष ! जिसने सोये हुए मेरे वीर-बन्धु को बाण मार कर घायल किया । वह काई नीतिमान् वीर-पुरुष नहीं हो सकता। वीर पुरुष असावधान, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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