Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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देव द्वारा मोह-भंग दह सिद्धार्थ बन्धु, जो बलदेवजी का सारथि चा और प्रवजित हो कर संयम साधना कर के देवगति पाई थी, उसे अपने वचन का स्मरण हुआ। उसने अवधिज्ञान से बलदेवजी की यह दशा देखी, तो स्वर्ग से चल कर आया। उसने एक पत्थर का रथ बनाया और बलदेव के देखते पर्वत पर से रथ को उतारा। वह रथ विषम पर्वत पर से उतर कर समतल भूमि पर आते ही टूट कर टुकड़े-टुकड़े हो गया। अब वह कृषक रूपी देव रथ को साँधने का प्रयत्ल करने लगा। बलदेवजी ने निकट बा कर कहा
"मूर्ख ! विषम-पथ में नहीं टूट कर समभूमि पर टूटा हुआ तेरा पत्थर का रथ भी अब जुड़ सकता है क्या ? व्यर्थ का प्रयास क्यों कर रहा है ?"
"महानुभाव ! में मूर्ख कैसे हुआ? यदि सैकड़ों युद्धों में अप्रतिहत रहे बापके बन्धु, बिना युद्ध के ही गत-प्राण हो सकते हैं और वे युनः जीवित भी हो सकते हैं, तो मेरा रथ यथापूर्व क्यों नहीं हो सकता"-देव ने कहा।
"तू महामूर्ख है। कोन कहता है कि मेरा भाई मर गया ? ये तो प्रगाढ़ निद्रा में निमग्न हैं"- रोषपूर्वक कह कर बलदेवजी आगे बढ़ गए।
देव आगे पहुँचा और माली का रूप बना कर, यत्थर पर कमल का पौधा लगाने का प्रयत्न करने लगा। बलदेवजी ने देखा और बोले-"तुम्हारी समझ में इतना भी नहीं आता कि पत्थर पर भी कहीं कमल लगेगा ?"
यदि मृत कृष्ण जीवित हो सकते हैं, तो पत्थर पर भी कमल खिल सकते हैं" -देव ने कहा।
बलदेवजी ने आँखें चढ़ा कर कहा-" तुम झूठे हो।" वे आगे बढ़ गए। बाने चन्न कर देव एक वृक्ष के जले हुए ढूंछ को पानी से सिंचने लगा।
"ऐ गंवार! कहीं शुष्क ढूठ भी सिंचने से हरा-भरा हो सकता है'-बलदेवजी नेटोका।
--" आपके मृत-बन्धु जीवित हो सकते हैं, तो यह जला हुवा ढूंठ भी हरा हो सकता है।"
रोषपूर्वक दृष्टि से उसे देख कर बलदेवजी आगे बढ़े। देव, ग्वाले के रूप में आगे बढ़ कर एक भरी हुई गाय के मुंह में हरी घास भरने लगा और पानी डालने लगा। यह देख कर बलदेवजी बोले
"अरे ग्वाले ! ढोर चराते-चराते तेरी बुद्धि भी ढोर जैसी हो गई है ? अरे मरी हुई गाय भी कहीं घास खाती है, पानी पीती है ?"
xपृष्ठ ६४७.
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