Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 641
________________ तीर्थङ्कर चरित्र रूप में उपस्थित हो कर श्रीकृष्ण का अभिवादन किया और कहने लगा-“इन्द्र ने देवसभा में आपकी प्रशंसा की थी, किन्तु में विश्वास नहीं कर सका और आपकी परीक्षा लेने के लिये चला आया। मैने आपमें वे सभी गुण पाये हैं, जिनकी शक्रेन्द्र ने प्रशंसा की थी। हे महाभाग ! कोई इच्छित वस्तु माँगिये जिससे मैं आपको संतुष्ट कर सकू।" श्रीकृष्ण ने कहा--" इस समय मेरी द्वारिका नगरी में भयानक रोग फैला हुआ है। इस रोग के निवारण के लिये जो वस्तु उचित हो, वहीं दीजिये।" इस पर देव ने श्रीकृष्ण को एक भेरी (बड़ा ढोल या नगाड़ा) प्रदान की और कहा-"यह छः महीने में एक बार नगरी में बजावें। इससे सभी प्रकार के रोग-उपद्रव शान्त हो जावेंगे तथा छः महीने तक कोई रोग उत्पन्न नहीं होगा। श्रीकृष्ण ने द्वारिका नमरी में भेरी बजवाई, जिससे नगर निवासियों के समस्त रोग दूर हो गये। भेरी के साथ भ्रष्टाचार इस देव-प्रदत्त भेरी की प्रशंसा दूर दिगन्त तक व्याप्त हो गई। एक धनाढ्य व्यक्ति दाह-ज्वर के भयंकर रोग से पीड़ित था। वह भेरी को प्रशंसा सुन कर अपने देश से चल कर द्वारिका नगरी में आया। उसके एक दिन पूर्व ही भेरी-नाद हो चुका था। उसने भेरी के रक्षक से कहा-" तू इस भेरी का एक छोटा-सा टुकड़ा मुझे दे दे और बदले में एक लाख द्रव्य ले। मैं रोग से भयंकर कष्ट पा रहा हूँ और अब छह महीने तक सहन नहीं कर सकता । दया कर मुझ पर। मैं अपने जीवन-दान के बदले तुझे यह लाख मुद्रा दे रहा हूँ।" भेरीपाल लालच में आ गया और एक छोटा-सा टुकड़ा काट कर उसे दे दिया। इससे उस रोगी का रोग उपशान्त हो गया । भेरीपाल ने चन्दन की लकड़ी के टुकड़े से भेरी के उस खण्डित भाग को जोड़ कर बराबर कर दिया। भेरीफ़ाल के भ्रष्टाचार की वृत्ति बढ़ी । वह धन ले कर भेरी के टुकड़े कर के देने लगा। होते-होते वह भेरी पूरी चन्दन के टुकड़ों के जोड़ की हो गई । इसमें मौलिक एक अंश भी नहीं रहा । कालान्तर में द्वारिका में फिर भयानक रोग व्याप्त हो गया । श्रीकृष्ण ने उस भेरीपाल को भेरी बजाने की आज्ञा दी । भेरीपाल ने भेरी बजाई, लेकिन उस टूटी-फूटी और चन्दन के टुकड़ों से जुड़ी हुई भेरी का नाद, पूरी राज-सभा भी नहीं सुन सकी । श्रीकृष्ण को आश्चर्य हुआ। उन्हें पता लग गया कि भेरीपाल के भ्रष्टाचार ने इस दैविक-निधि को नष्ट कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680