Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पद्मनाभ द्वारा द्रौपदी का हरण
और नगर में ढिंढोरा पिटवाया कि--"जो कोई मनुष्य, द्रौपदी का पता लगा कर बताएगा, उसे विपुल पुरस्कार दिया जायगा।"
__ इतना करने पर भी द्रौपदी का कहीं भी पता नहीं लगा, तो पाण्डु-राजा ने महारानी कुन्तीदेवी से कहा-“देवी ! तुम अपने पीहर द्वारिका जाओ और. कृष्ण-वासुदेव. से द्रौपदी की खोज करने का निवेदन करो। हमारे तो सभी प्रयत्न निष्फल गये हैं।"
कुन्तीदेवी गजारूढ़ हो कर हस्तिनापुर एवं कुरु जनपद से निकल कर.सौराष्ट्र देश में प्रवेश कर के द्वारिका नगरी के उद्यान में पहुँची। हस्ति पर से उतर कर विश्राम । किया और एक अनुचर को, श्रीकृष्ण के समीप अपने. आगमन का सन्देश ले कर भेजा। बूआ का आगमन जान कर श्रीकृष्णा प्रसन्न हुए और हाथी पर आरूढ़ हो कर गजारूढ़ एवं अश्वारूढ़ दल आदि के साथ उपवन में पहुंचे। उन्होंने बूआजी का चरण-वन्दन किया;;. फिर आदरपूर्वक अपने साथ हाथी पर बिठा कर भवन में प्रवेश कराया । स्नान-मंजन; खान पान और विश्राम के बाद श्रीकृष्ण ने आगमन का प्रयोजन पूछा । कुन्तीदेवी ने घटना का वर्णन किया और द्रौपदी को खोज कर प्राप्त करने का कहा । श्रीकृष्ण ने कहा ;
"बूआजी ! मैं द्रौपदी देवी की खोज कराऊँगा और पता लगने पर वह अर्धभरत में, या कहीं भी--पाताल में भी--होगी, तो खुद ले आऊँगा आप निश्चिन्त रहें।" । - इसके बाद श्रीकृष्ण-वासुदेव ने भी द्रौपदी को खोज़ प्रारम्भ कर दी.। एक दिन श्रीकृष्ण अन्तःपुर में थे कि नारद आये । सत्कार-सम्मान और कुशल-पृच्छा के बाद श्रीकृष्ण. ने पूछा-" देवानुप्रिय ! आप ग्राम-नगरादि में भ्राण करते रहते हो, यदि, आपने कहीं। द्रौपदी को देखा हो, तो बताओ।"
नारदजी के आने का प्रयोजन भी, यही था। उन्होंने कहा--
"देवानुप्रिय ! मैं एकबार धातकीखंड के पूर्व के दक्षिणार्ध भर की अमरकंका. राजध नी में गया था। वहाँ पद्मोत्तर राजा के अन्तःपुर में द्रौपदी के रामान एक स्त्री देखने में आई थी।"
"महानुभाव ! यह आप ही की करतूत तो नहीं है"-श्रीकृष्ण ने पूछा।
इतना सुनते ही नारदजी उठ कर चले गये । श्रीकृष्ण ने पाण्डु-नरेश को सन्देश भेजा-"द्रौपदी धातकीखंड की अमरकका राजधानी के राजा पद्मोत्तर के यहां है। इसलिए पाँचों पाण्डव अपनी सेना के साथ पूर्व-दिशा के समुद्र के किनारे पहुँचे और मेरीः प्रतीक्षा करें।" .
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