Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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लगा । भोरु की पुकार पर सत्यभामा भुनभुनाती हुई प्रद्युम्न के निकट आई और रोषपूर्वक बोली ;
बोली ।
तीर्थंकर चरित्र
" दुष्ट ! तू यहां क्यों रह गया ? जा भी टल यहां से ।"
"में कहाँ जाऊं माताजी " - सस्मित प्रद्युम्न ने पूछा
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" श्मशान में " - प्रद्युम्न को हँसता देख कर विशेष क्रोधित होती हुई सत्यभामा
" श्मशान में कब तक रहूँ बोर वहाँ से लौट कर कब आऊँ" -- मुंह लटका कर उदास बने हुए प्रद्युम्न ने पूछा ।
" जब में स्वयं शाम्ब का हाथ पकड़ कर नगरी में लाऊं, तब तू भी आ जाना' सत्यभामा ने कुछ सोच कर शर्त लगाई ।
" माता की आज्ञा शिरोधार्य " कह कर प्रद्युम्न चल दिया । वह श्मशान भूमि में आया और शाम्ब भी वहाँ आ पहुँचा । दोनों ने वहीं मड्डा लगाया । उन्होंने जलाने के लिए लाये जाने वाले मूर्दों पर बहुत बड़ा कर लगा दिया। वे कर मिलने पर ही शव जलाने देते। कुछ-न-कुछ काम करना ही या उन्हें- ई-मशान में रह कर । इससे उनकी • हलचल बढ़ती और पिताथी तक बात पहुँचती । वे यही चाहते थे ।
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सत्यभामा प्रसन्न थी । अब उसने भीरु का लग्न करने का विचार किया। उसने १९ कन्याओं का प्रबन्ध कर लिया। अब अपने पुत्र का महत्त्व बढ़ाने के लिए वह १०० राजकुमारियों से एक साथ लग्न कराना चाहती थी। शेष एक कन्या की खोज की जाने लगी । प्रद्युम्न सब जानकारी प्राप्त करता था । उसे सत्यभामा का मनोरथ ज्ञात हो गया । उसने विद्याबल से अपना एक वैभवशाली राजा का ठाठ बनाया और बड़े आडम्बर के साथ उद्यान में ठहरा । शांब को उसने परम सुन्दरी राजकुमारी बनाई । वह वस्त्रालंकार से सुशोभित हो कर सखियों के साथ वाटिका में विचरण करने लगी । भीरुरु की धात्रि माता की दृष्टि उस पर पड़ी। वह उसके यौवन और सौन्दर्य पर आकर्षित हुई। उसके कुल-शील आदि का परिचय ले कर अपनी स्वामिनी के पास आई और राजकुमारी की बहुत प्रशंसा की । सत्यभामा ने दूत भेज कर जित तत्रु गजा से अपने पुत्र के लिए राजकुमारी की याचना की । जितशत्रू राजा बने हुए प्रद्युम्न ने कहा--" में श्रीकृष्ण के सुपुत्र को अपनी पुत्री देना अपना अहोभाग्य मानता हूँ । किन्तु मेरी पुत्री बड़ी मानिनी है । उसने प्रण किया है कि- 'मेरी सास महारानी हो और वह स्वयं मेरा हाथ पकड़ कर मुझे समारोह सहित नगर प्रवेश करा कर सम्मानपूर्वक लेके बाय तथा रानियों
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