Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
सत्यभामा फिर छली गई
းများများ
५५३
में मेरा अग्रस्थान हो और हस्त-मिलाप के समय मेरा हाथ ऊपर रहना स्वीकार हो, तभी में विवाह बन्धन स्वीकार करूँगी ।" उसकी इस प्रतिज्ञा के कारण ही सम्बन्ध में रुकावट आ रही है। यदि आप इसकी यह मामूली-सी टेक पूरी कर सकें, तो सम्बन्ध हो सकता है, अन्यथा आगे और कहीं देखेंगे ।"
दूत ने महारानी को सन्देश पहुँचाया। महारानी स्वयं उद्यान में पहुँची। राजकुमारी का रूप और लावण्य देख कर बड़ी प्रसन्न हुई और राजकुमारी की शर्त स्वीकार कर ली । राजकुमारी बने हुए शाम्ब ने प्रज्ञप्ति-विद्या द्वारा ऐसा आभास उत्पन्न किया कि सत्यभामा और उसके परिजनों को तो वह एक सुन्दर राजकुमारी ही दिखाई दे, किन्तु दूसरों को शाम्बकुमार अपने वास्तविक रूप में दृष्टिगोचर हो । सत्यभामा ने राजकुमारी का हाथ पकड़ा और वाहनारूढ़ हो कर समारोहपूर्वक नगर प्रवेश किया। नागरिकजन आश्चर्य करने लगे कि जिस महारानी सत्यभामा के कारण ही शाम्बकुमार को नगर का त्याग करना पड़ा था और जो शाम्ब और प्रद्युम्न पर अत्यन्त रुष्ट थी, वही उसे सम्मानपूर्वक कैसे ला रही है ? किसी ने कहा - " अरे भाई ! इनके पुत्र भीरुक कुमार का विवाह है, सो विवाह में तो रूठे हुओं को मना कर लाना ही पड़ता है । फिर शाम्बकुमार ने भी शर्त लगाई होगी कि -- “ अब तो में तभी आऊँ, जब कि आप खुद मुझे सम्मानपूर्वक ले जावें । इसलिये ऐसा करना पड़ा होगा ।"
लग्न मण्डप में शाम्ब ने भीरुक के दाहिने हाथ पर अपना बाँया हाथ रखा और शेष ९९ कन्याओं के बाँये हाथ पर अपना दाहिना हाथ रखा । विवाह - विधि पूर्ण होने के बाद शाम्ब शयन कक्ष में आया और उसी समय भीरुक भी आया । शाम्ब ने भीरुक को दुत्कारते हुए धमकाया, तो भीरुक वहाँ से भागा और माता के पास जा कर पुकार की । सत्यभामा पहले तो स्तंभित रह गई, फिर उस स्थान पर आई और शाम्ब को देख कर क्रुद्ध हो गई । वह गर्जती हुई बोली; --
“दुष्ट, निर्लज्ज ! क्यों आया तू यहाँ ? तुझे कौन लाया यहाँ ? राजाज्ञा की अवहेलना किसने कराई ? बता, मैं अभी तुझे और उस राजद्रोही को अपनी दुष्टता का फल चखाती हूँ ।"
Jain Education International
" माताजी ! आप क्रुद्ध क्यों होती हैं " - - शाम्ब ने सत्यभामा के चरणों में प्रणाम करते हुए कहा--" आप ही तो मुझे सम्मानपूर्वक लाई और इतनी लड़कियों के साथ मेरा ब्याह किया और अब आप ही अनजान बन रही हैं ? वाह माताजी ! आप भी गजब करती हैं । सारा नगर जानता है कि आप मुझे बड़ी खुशी के साथ गाजे-बाजे से
ပြီး
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org