Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
जरासंध का मरण और युद्ध समाप्त कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककर तोड़ डाला । अब कंस खड्ग ले कर कृष्ण की ओर दौड़ा, किन्तु सामने आते ही श्रीकृष्ण ने उसका मुकुटयुक्त मस्तक काट कर गिरा दिया।
जरासंध का मरण और युद्ध समाप्त
शिशुपाल के वध से जरासंध अत्यन्त उत्तेजित हो गया और यमराज के समान विकराल हो कर अपने पुत्रों और राजाओं के साथ रणभूमि में आ धमका और यादवीसेना को लक्ष्य कर कहने लगा;
"सुनो, ओ यादव-सेना के अधिकारियों, सुभटों और सहायकों ! मैं व्यर्थ का रक्तपात नहीं चाहता । मेरा तुम पर रोष नहीं है और न मैं तुम्हारा अनिष्ट चाहता हूँ। मेरे अपराधी कृष्ण और बलभद्र हैं। इन्हें मुझे सौंप दो । बस युद्ध समाप्त हो जायगा । मैं तुम सब को अभय-दान दूंगा । तुम सब का जीवन बच जायगा । दो व्यक्तियों के पीछे हजारोंलाखों के काल को न्योता मत दो । यदि तुमने मेरी बात नहीं मानी, तो मेरे कोपानल में तुम्हारा सब का जीवन समाप्त हो जायगा ।"
जरासंध के वचनों ने यादवों में उत्तेजना उत्पन्न कर दी। उन्होंने वाक्-बाण का उत्तर शस्त्र-प्रहार से दिया । जरासंध भी महावीर था। उसके रणकौशल ने यादवी-सेना और सेना के वीर अधिकारियों के छक्के छुड़ा दिये । वह एक भी अनेक रूप में दिखाई देने लगा । वह जिस ओर जाता, उस ओर की सेना माग खड़ी होती । कुछ ही काल के युद्ध में यादवों की विशाल सेना भाग गई और उसके अधिकारी भी भयभीत हो कर इधर-उधर हो गए।
जरासंध के अठाईस पुत्रों ने सम्मिलित रूप से बलभद्रजी पर आक्रमण किया और अन्य उनहत्तर पुत्रों ने कृष्णजी पर । इन्होंने उन्हें चारों ओर से घेर कर नष्ट करने के लिये भयंकर प्रहार करना प्रारम्भ किया। श्रीकृष्ण और बलदेव भी घूम-घूम कर प्रहार करने लगे । दोनों पक्षों के शास्त्रास्त्रों की टकराहट से चिनगारियाँ झड़ कर आकाश में विद्युत जैसा चमत्कार करने लगी । बलभद्रजी ने अपने हल से अठाईस पुत्रों को खिंच कर मूसल से खाँड़ कर कुचल डाला। वे सभी समाप्त हो गए । अपने अठाइस पुत्रों को एकसाथ समाप्त हुए देख कर जरासंध एकदम उबल पड़ा और अपनी वज्र के समान गदा का भद्रजी पर प्रहार किया, जिससे वे घायल हो गए और रक्तपूर्ण वमन करने लगे। इससे यादवी-सेना में हाहाकार मच गया। बलभद्रजी को जीवन-रहित करने के लिए उसने फिर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org