Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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५४२ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककरय
तीर्थङ्कर चरित्र
आगमन नहीं हुआ, तो मैंने कुलदेवी के सामने अपने-आपकी बलि चढ़ाने के लिए, गले पर खड्ग का प्रहार किया। कुलदेवी प्रकट हुई और मुझे रोकती हुई बोली--पुत्री ! तू चिंता मत कर । तेरा पुत्र तुझे अवश्य मिलेगा । तेरे आँगन में रहा हुआ आम्रवृक्ष जब अकाल में ही विकसित हो जायगा, तो उसी समय तेरा पुत्र तेरे समीप होगा।" आम्रवृक्ष तो विकसित हो चुका किंतु पुत्र अभी तक नहीं आया। इसी से मैं उद्विग्न हूँ। आप ज्ञानी हैं। अपने ज्ञान-बल से देख कर बतादें कि मेरा पुत्र कब आएगा ?"
___"मैं क्षुधातुर हूँ। भोजन से तृप्त होने के पूर्व कुछ नहीं कह सकता । मुझे शीघ्र भोजन चाहिये।"
रुक्मिणी भोजन-व्यवस्था करने के लिये उठी, तो विप्र बोला-- 'मुझे तुम खीर बना दो-अति शीघ्र ।" रुक्मिणी खीर बनाने लगी, तो प्रद्युम्न की करतूत से चूल्हा भी नही सुलगा । वह खेदित हो गई। बाद में प्रद्युम्न बोला--
"तुम्हारे पास बो वस्तु हो, वही मुझे दे दो।"
"अभी तत्काल तो सिंहकेसरी-मोदक मेरे पास है। किन्तु वह में तुम्हें नहीं दे सकती, क्योंकि उन्हें पचाने की शक्ति, सिवाय श्रीकृष्ण के और किसी में नहीं है और तुम तपस्वी बालक हो । तुम्हें वह मोदक में नहीं दे सकती"-महारानी ने कहा ।
--"भद्रे ! मैं तपस्वी हूँ। तुम्हारा सिंहकेसरी-मोदक मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता । तुम निःसंकोच मुझे दे दो।"
रुक्मिणी मोदक देने लगी और विप्र-बालक खाने लगा । रुक्मिणी आश्चर्यान्वित हो कर बोली--"आश्चर्य है कि आप इतने मोदक कैसे पचा लेंगे ?"
प्रद्युम्न ने दासियों को भी मॅड़ दी
उधर सत्यभामा, देवी के सामने बैठी जाप कर रही थी कि उद्यान-रक्षक ने निवेदन कराया कि--“एक पुरुष बन्दर ले कर आया था। उसने सारे उद्यान को उजाड दिया है।" दूसरा सन्देश आया कि-" संग्रहित घास नष्ट कर दिया गया और जलाशय खाली हो गए." इसके बाद यह भी समाचार पहुंचा कि “वर-राजा भानु कुमार, घोड़े पर से गिर पड़ । उनके शरीर में गम्भीर चोट लगी है।" अब सत्यभामा स्थिर नहीं रह सकी। सने दासी से पूछा--"वे महात्माजी कहाँ है ?" दासी ने कहा-" वे सारा भोजन खा चुकने पर
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