Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रद्युम्न का वैदर्भी के साथ लग्न
दिया। वे उद्यान में पहुँचे । अर्ध-रात्रि के समय प्रद्युम्न बिद्याबल से चल कर राजकुमारी के शयन कक्ष में पहुँचा और निद्रामग्न वैदर्भी को जगाया । वह जागते ही चौंकी, किंतु अपने सम्मुख, अपने हृदय-पट पर छाये हुए को साक्षात् देख कर चकित रह गई । उसी के विचार में निद्रामग्न हो कर सुखद स्वप्न देखती हुई वैदर्भी का आश्चयं दूर करने के लिये प्रद्युम्न ने उसे एक पत्र दे कर कहा - " यह मेरी माता अर्थात् तुम्हारी बूआ ने दिया है । तुम्हारी बूआ को भी उनकी बूआ ने सहयोग दिया था। अब तुम्हें भी तुम्हारी बूआ सुझाव दे रही है ।" वास्तव में पत्र की योजना भी प्रद्युम्न ने ही की थी। दोनों की मनोकामना सफल हुई । प्रद्युम्न वैदर्भी के लिये विवाह का वेश साथ ले आया था, सो पहिनाया और दोनों अपने-आप परिणय-बन्धन में बन्ध गए । रात्रि के अन्तिम पहर में कुमार चला गया और वैदर्भी को कहता गया कि तुम्हारे माता-पिता पूछे, तो मौन ही रहना । वैदर्भी निद्राधीन हो गई । प्रातःकाल वैदर्भी की धाय-माता उसे जगाने आई । किन्तु उसके वेश आदि देख कर स्तंभित रह गई । वह दौड़ी हुई महारानी के पास आई । राजा-रानी मिल कर आए और पुत्री की स्थिति देख कर अत्यन्त क्रुद्ध हुए । राजा दहाड़ा -
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'कूलटा ! तेरे कारण मैने बहिन और श्रीकृष्ण जैसे समर्थ बहनोई से वर बसाया । उनकी मांग ठुकराई और किन्नरों से वचन हारा। किन्तु तेने मेरी प्रतिष्ठा, कुलीनता और स्नेह को कुचल कर नष्ट कर दिया। अब तू मेरे लिए मरी हुई है । मैं तुझे उन गन्धव को दे कर अपना वचन निभाउँगा।
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राजा ने सेवक भेज कर गन्धर्वों को बुलाया और उन्हें पुत्री सौंप दी। वे राजकुमारी को ले कर उद्यान में आये। उधर थोड़ी ही देर बाद राजा का कोप उतरा और स्नेह जगा । वह अपने दुष्कृत्य और पुत्री का स्मरण कर के रोने लगा। कुटुम्बीजन समझाने लगे । इतने में उन सब के कानों में वादिन्त्रों की ध्वनि पड़ी। पता लगाने पर मालूम हुआ कि प्रद्युम्न और शाम्ब कुमार उद्यान में आ कर बसे हैं और बड़े ठाठ से विवाहोत्सव मना रहे हैं । राजा प्रसन्न हुआ । उन्हें उत्सवपूर्वक राज्य भवन में लाया और विधिपूर्वक लग्न करके विपुल दहेज के साथ बिदा किया। महारानी रुक्मिणी की मनोकामना सफल हुई ।
हेमांगद राजा की सुहिरण्या पुत्री के साथ शाम्बकुमार के लग्न हुए और वह भी सुखपूर्वक रहने लगा ।
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