Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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အဗျာများ
व्यसन का दुष्परिणाम
Fepsness
भाज के हित के लिए मुझे सहयोग देना स्वीकार करना पड़ा। आपको भी स्वीकृति दे देनी चाहिए ।"
" अच्छा भाई ! तुम कहते हो, तो मैं तुम्हें निराश नहीं करता, परन्तु विदुर को तो हस्तिनापुर से आने दो "-- धृतराष्ट्र ने हताश होते हुए स्वीकृति दी ।
दुर्योधन स्वीकृति पा कर प्रसन्न हुआ ।
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व्यसन का दुष्परिणाम
दुर्योधन ने जयद्रथ को भेज कर युधिष्ठिरादि पाण्डव-परिवार को आमन्त्रित किया । वे द्रौपदी सहित आये और भीष्मपितामह आदि भी आये। मायावी दुर्योधन ने सीमा पर पहुँच कर उन सब का स्वागत किया और बड़ी धूमधाम से नगर प्रवेश करा कर राज्य - प्रासाद में लाया । अनेक प्रकार के उत्सवों का आयोजन हुआ। खेल-तमाशे, नृत्य-नाटक आदि का आयोजन किया । दर्शनीय स्थानों का अवलोकन कराया और पाण्डवों का हृदय अपने प्रति विश्वस्त एवं निःशंक बना दिया। कई प्रकार के खेल खेलने के बाद जुआ के खेल का आयोजन हुआ। एक ओर दुर्योधन, शकुनि ओर उनकी विश्वस्त धूर्त्त मण्डली थी और दूसरी ओर युधिष्ठिरादि पाँचों बन्धु थे । खेल युधिष्ठिर और दुर्योधन में होने लगा । अन्य दर्शक रहे । प्रारम्भ में छोटी-छोटी बाजी • लगने लगी और दोनों ओर हार-जीत होने लगी । खेल जमने के बाद शकुनी ने अपनी माया चलाई और युधिष्ठिर की हार होने लगी । अब बड़ी-बड़ी रकमें दाँव पर लगने लगी । भीष्मपितामह आदि रोकते पर युधिष्ठिर नहीं मानते और हार को जीत में परिवर्तित करने के लिए अधिकाधिक दाँव लगाते। होते-होते गांव, नगर आदि दाँव पर लगने लगे । युधिष्ठिर हारता जा रहा था और ज्यों-ज्यों हारता, त्यों-त्यों अधिकाधिक मूल्यवान वस्तु दाँव पर लगाता । युधिष्ठिर का हार का ही दौर चल रहा था । होते-होते उन्होंने अपना समस्त राज्य होड़ पर लगा दिया । भीमसेन आदि अपने ज्येष्ठ भ्राता के अनुगामी थे । वे हार से चिंतित होते हुए भी चुप थे। युधिष्ठिरजी को समस्त राज्य जुए पर लगाया देख कर भीष्मपितामह आदि हितैषीजन चिन्तित हुए । उन्होंने खेल रोक कर पहले यह निर्णय किया कि युधिष्ठिर राज्य भी हार जाय, तो वह राज्य दुर्योधन के अधिकार में कब तक रहे ? विचार करने के बाद बारह वर्ष की अवधि निश्चित की गई। इसके
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