Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककवचनदादककवक
विचूर्ण कर, उसके रक्त से पृथ्वी का सिंचन नहीं करूं, तो मैं पाण्डु-पुत्र नहीं।"
भीमसेन की भीषण प्रतिज्ञा सुन कर सभाजन क्षुब्ध हो गए । इस के बाद विदुर ने धृतराष्ट्र से कहा
"भाई ! आपके इस दुरात्मा पुत्र ने अपने कुरुवंश की प्रतिष्ठा, गौरव, सुखशांति और समृद्धि में आग लगा दी। इसके जन्म के समय ही यह ज्ञात हो गया था कि यह दुरात्मा कुलांगार होगा और इसके द्वारा कौरव-कुल विनष्ट होगा । आज से इस भविष्यवाणी की सफलता का आधार लग गया है । भीमसेन की प्रतिज्ञा सफल होगी और कौरव-पाण्डव के वैर की ज्वाला भयंकर रूप धारण कर के सर्वनाश कर देगी। भाई ! यदि इस एक दुष्ट के ही विनाश से सर्वनाश रुकता हो, तो वही करना चाहिए । यदि तू पुत्र-मोह में वैसा नहीं कर सकता हो, तो इस अनर्थ को रोक । अपने दुष्ट पुत्र पर अंकुश रख ।"
इतना कह कर विदुर विचार-मग्न हो गए । कुछ देर सोचने के बाद बोले--
"भाई ! अब और कोई उपाय काम नहीं आ सकता । पाण्डव, द्रौपदी सहित बारह वर्ष वनवास रहेंगे। इसके बाद उनका राज्य उन्हें लौटा देना होगा । यह निणय तुम्हें स्वीकार है ?"
धृतराष्ट्र भी क्षुब्ध हो रहा था। उसने दुर्योधन की भर्त्सना करते हुए कहा--
"अरे नीच दुर्योधन ! तू इतना अधम हो जायगा--इसकी सम्भावना भी मुझे नहीं थी। कुलांगार ! तू इन्हें दासत्व से मुक्त कर दे, अन्यथा तेरा या मेरा--दोनों में से किसी का जीवन आज समाप्त हो जायगा।"
पिता की क्रोधपूर्ण फटकार से दुर्योधन दबा। उसने विचार कर के कहा--"आपके बारह वर्ष वनवास का निर्णय स्वीकार है, साथ ही मेरी ओर से एक वर्ष का अज्ञातवास भी स्वीकार होना चाहिये। बारह वर्ष के वनवास के बाद एक वर्ष अज्ञात वास रहे। यदि एक वर्ष के गुप्तवास में ये प्रकट हो जायँ और मुझे इसका पता लग जाय, तो फिर से बारह वर्ष वनवास में रहना पड़ेगा।"
दुर्योधन का निर्णय कठोरतम होते हुए भी पाण्डवों ने स्वीकार किया और वे दासत्व से मुक्त हो गए। पाँचों पाण्डव और द्रौपदी भीष्मपितामह आदि को प्रणाम कर, इन्द्रप्रस्थ के राजभवन से निकले । उनको बिदाई देने के लिए भीष्म आदि आप्तजन और अन्य स्नेहीजन साथ चले। नगर के बाहर कुछ दूर चलने के बाद युधिष्ठिर ने आग्रहपूर्वक सब को लौटाया । सभी की आँखें अश्रुपूर्ण थी। वे सभी खिन्न-वदन नगर में आये।
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