Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भीम के साथ हिडिम्बा के लग्न
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उसे एक जलाशय दिखाई दिया। उसने वृक्ष के पत्तों का एक पात्र बनाया और उसमें जल भर कर लौटा । थकान और प्यास से पीड़ित सभीजन निद्राधीन हो गए थे। वह ज्योंहि उनके निकट पहुँचा, उसे सामने ही एक विकराल रूप वाली स्त्री माती हुई दिखाई दी। उसके देखते-देखते ही उस भयानक रूप वाली स्त्री का रूप पलट कर सुन्दर एवं मोहक हो गया । भीमसेन ने उससे पूछा--"तुम कौन हो ?" उसने कहा
“मैं राक्षसकुमारी हूँ। मेरा नाम हिडिम्बा है । इस वन में मैं अपने भाई के साथ रहती हूँ । इस वन पर मेरे भाई का राज्य है । यदि कोई भूला-भटका मनुष्य इस वन में आ जाता है. तो वह मेरे भाई का भोजन वन जाता है । अभी वह नींद से जाग कर उठा है और उसे भूख लगी है। मैं उसके भोजन का प्रवन्ध करती हूँ । भाई को मनुष्य की गन्ध आई। उसने मुझे गन्ध की दिशा में मनुष्य को लाने के लिए भेजा है। मैं तुम सब को लेने के लिये आई हूँ, किन्तु तुम्हारे मोहक रूप ने मेरी मति पलट दी। मैं तुम पर मुग्ध हूँ। तुम मुझे अपना लो । जब मैं आई, तब भक्षक बन कर आई थी । उस भावना से मेरा रूप भी भयंकर हो गया था ! अब मैं तुम्हारी प्रेयसी बनना चाहती हूँ। मुझे अभी इसी समय स्वीकार कीजिये । विलम्ब होने पर मेरा भाई यहाँ ना जाएगा और तुम सब का भक्षण कर जायगा। मेरा पाणिग्रहण करने से वह आपका कुछ भी अनिष्ट नहीं कर सकेगा।"
हिडिम्बा की याचना ने भीमसेन को विचार-मग्न बना दिया। थोड़ी देर विचार कर वह बोले--
"सुन्दरी ! तेरे प्रेम को मैं समझ गया हूँ। मैं तुम्हारी इच्छा की अवहेलना नहीं करता, किन्तु मैं विवश हूँ। ये सोये हुए पुरुष मेरे भाई हैं, यह मेरी माता है और यह हम पांचों की पत्नी है । मैं इससे संतुष्ट हूँ। इसके सिवाय मुझे किसी अन्य प्रियतमा की आवश्यकता नहीं है । मैं इसकी उपेक्षा कर के दूसरी पत्नी करने का विचार भी नहीं कर सकता । तुम मुझे क्षमा कर दो।"
उनकी बात चल ही रही थी कि हिडिम्ब राक्षस, क्रोध में उत्तप्त होता हुआ और दांत पीसता हुआ वहाँ आया। अपनी बहिन को एक पुरुष से प्रेमालाप करते देख कर गर्जता हुआ बोला;
--"पापिनी, दुष्टा ! में वहां भूख के मारे तड़प रहा हूँ और तू यहाँ कामान्ध बन कर प्रेमालाप कर रही है ? ठहर ! सब से पहले मैं तुझे ही अपना भक्ष बनाता हूँ। इसके बाद पापी से अपना पेट भरूँगा।"
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