Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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कामान्ध कोचक का वध कककककककककककककककककृयकालकककककतावकककककककककककककककककककककककनन्दन
बड़ा था और राजा के राजकाज में सहायक था। राजा, कीचक की बुद्धि और कार्यकुशलता से प्रभावित था। कीचक के भाई विराट नरेश की सोजन्यता का अनुचित लाभ ले कर नागरिकजनों पर अत्याचार करते थे। जनता उनके अत्याचार से पीड़ित थी। महाराज के कानों तक यह बात पहुँच चकी थी, किन्तु वे उपेक्षा कर रहे थे। कीचक की दृष्टि द्रौपदी पर पड़ी और वह उसके रूप पर मोहित हो गया। उसने द्रौपदी को अपनी ओर आकर्षित करने की बहुत चेष्टा क! । किन्तु द्रौपदी उससे उदासीन ही नहीं, विमुख रही । कीचक द्रौपदी को पाने के उपाय सोचने लगा। उसने अन्तःपुर की एक दासी को द्रौपदी को प्राप्त कराने का कार्य सौा । दासी ने द्रौपदी के पास पहुंच कर उसके रूपसौंदर्य की सर्वत्र होती हुई प्रशंसा की चर्चा करती हुई उसे प्रसन्न करने की चेष्टा की,
और फिर कोचक के रूप-यौवन, बल और रसिकता की प्रशंसा करती हुई उससे एक बार मिलने का आग्रह किया। द्रौपदी का क्रोध भड़क उठा । एक स्त्री ही उसे दुराचार में घसीटने की चेष्टा करे, यह उसे सहन नहीं हुआ। उसने उस कुटनी को फटकारते हुए
"दुष्टा ! तू स्त्री-जाति का कलंक है । तेरे स्पर्श से वायु भी दूषित हो जाती है। तेरा जीवन ही धिक्कार है । याद रख, तू और तेरा वह रसिक लम्पट, मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते । मेरे गन्धर्व पति, गुप्त रह कर मेरी रक्षा करते हैं। यदि किसी ने मेरे साथ बलात्कार की चेष्टा की, तो उसका जीवन समाप्त हो जायगा । तू अपने उस लम्पट से कह देना कि भूल कर भी दुःसाहस नहीं करे और तू भी मुझसे दूर ही रहना।"
द्रौपदी का क्रोध में तमतमाया हुआ दीप्तिमान तथा राजतेज युक्त श्रीमुख देख कर दासी सहम गई। उसे लगा कि इस दासी के सामने तो राजमहिषी भी दासी के समान लगती है। वह वहाँ से हट गई और कीचक को असफलता का परिणाम सुना कर निराश कर गई। किन्तु कीचक की कुबुद्धि ने जोर लगा कर पुनः उत्साहित किया है। उसने सोचा"दासी के द्वारा आकर्षित करने से प्रच्छन्नता नहीं रहती। यदि दासी कहीं बात कर दे, तो निन्दा होने का भय रहता है और इससे सेवा से पृथक भी की जा सकती है। कदाचित् इस भय से सैरंध्री, दासी पर क्रुद्ध हुई हो। अब मुझे स्वयं एकांत में उसे पकड़ कर अपना मनोरथ पूर्ण करना ठीक रहेगा।"
दूसरे ही दिन कीचक ने द्रौपदी को एकान्त में देखा और उसकी दुर्वासना भड़की। वह द्रौपदी के सामने पहुंचा और उसे पकड़ने का प्रयत्न करने लगा द्रौपदी उससे बच कर राजसभा की बोर भागी और राजा से रक्षा करने की प्रार्थना की। उसने कहा
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