Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र किककककककककककककककक कककककककककककककककक कककबन्न सकतन्यदायकवककककककक्व
“नराधिपति ! में संगीत-कला में पारम्बन हूँ। पाण्डु नरेश ने मुझे गान-वादन कला के आचार्य से शिक्षा दिला कर निपुण बनाया था और अन्तःपुर की राजकुमारियों का संगीत-शिक्षक नियुक्त किया था। किन्तु जब दुर्योधन का चक्र चला और महाराजाधिराज युधिष्ठिरजी ने जुआ में राज्य हार कर वनवास लिया, तब राज्य में बड़ा क्षोभ व्याप्त हो गया । संगीत-शिक्षा बन्द हो गई । राज्य की डांवाडोल स्थिति देख कर में भी वहां से चल दिया । इतना समय अन्य राज्यों में व्यतीत कर, अब महाराज की शरण में आया हूँ । यदि मुझे भी कुछ सेवा का सुयोग मिल जाय, तो जीवन का कुछ काल यहीं बिता दूं।"
राजा को अपनी पुत्री राजकुमारी उत्तरा के लिए उच्चकोटि के संगीतज्ञ की आव. श्यकता थी ही। फिर यह तो नपुंसक भी था और निःसंकोच अन्तःपुर में रखा जा सकता या । राजा ने तत्काल उसे रख लिया और अन्तःपुर में भेज दिया।
द्रौपदी, महारानी सुदर्शना के पास पहुंची और प्रणाम कर के विनयपूर्वक बोली ;
“स्वामिनी ! मैं आजीविका के लिए, आपकी शरण में आई हूँ। पहले हस्तिनापुर की महारानी द्रौपदी की सेदिका थी । महारानी का शृंगार करना मेरा कार्य था। वे मुझ पर बहुत प्रसन्न रहती थी और अपनी सखी के समान मानती थी। उनके वनवास गमन से मेरे हृदय को आषात लगा और मैं हस्तिनापुर छोड़ कर निकल गई । मेरे पति महाराजा युधिष्ठिरजी के साथ वन में चले गए । में अन्य राज्यों में भटकता हई और अपने शील की रक्षा करती हुई आपका शरण में आई हूँ । मेरा नाम “संरधी" है । यदि आप मेरी सेवा स्वीकार करेंगी, तो मैं अपने शील को रक्षा करती हुई बीवन व्यतीत कर सकेंगी । पहले कुछ दिन मेरी सेवा देख लीजिये फि र स्थायी नियुक्त करियेगा।"
द्रौपदी के चेहरे को आभा, शालीनता और कुलीनता के प्रभाव ने महारानी को प्रभावित कर लिया। उन्होने द्रौपदी को रख लिया, किन्तु उसे सावधान कर दिया कि"जब महाराज अन्तःपुर में पधारें तब तुम को दृष्टि से ओझल रहर । अन्य दासियों के समान तुम महाराज के समक्ष नहीं आना ।"
कामान्य कोचक का वध
महागनी सुदर्शना पर विराट नरेश अत्यन्त अनुरक्त थे और उनकी प्रत्येक इच्छा का आदर करते थे । महारानी के एक सौ भाई भी वहीं रहते थे । 'कीचकउन सब में
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