Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र চক্কক্কককককককককককক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্ক ক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক্কক
इस पर बाप स्वयं ही विचार करें।" - मेरे इतना कहते ही नायेन्द्र ने तत्काल इन्हें बन्धन-मुक्त किया और आदर सहित - अपने पास बिठाया । इन्हें बन्दी छनरने वाले सेवकों की भर्त्सना कर के निकाल दिया और युधिष्ठिरजी आदि से अपने सेवकों द्वारा हुए अपराध की क्षमा माँगी । इतना ही नहीं, नामेन्द्र ने इन्हें सभी प्रकार के विष को दूर करने वाली मणिमाला प्रदान की और तुम्हारी 'वधू के कर्णभूषण के लिए एक नीलकमल दिया और कहा कि यह तब तक विकसित रहेगा, जब तक द्रौपदी के पांचों पति कल्याणवंत रहेंके। यदि उन्हें किसी प्रकार का संकट होमा, तो कमल मुरझा जायवा।" विदा होते समय युधिष्ठिर ने नागेन्द्र से कहा-“देवेन्द्र से मेरी प्रार्थना है कि हमारे निमित्त से जिन देवों को आपने निकाल दिया है. उन्हें क्षमा कर के पुनः अपनी सेवा में रख लीजिए !" - नामेन्द्र ने कहा-“धर्मराज ! सरोवर का मुख्य-रक्षक चन्द्रचूड़ है । इसे विवेक से काम लेना था । साधारण-सी बात पर, दिना चेतावनी दिये ऐसा उग्र व्यवहार करन। तो अत्याचार है। सब इनको तभी सेवा में किया जायगा कि भविष्य में, कर्ण के साथ अर्जुन के होने वाले महा युद्ध में चन्द्रचूह, अर्जुन का सहायक बन कर प्रायश्चित्त कर ले।"
इसके बाद हम आपकी सेवा में काहे । देव ने अपने कथन का उपसंहार करते हुए कहा--" माता ! आप सब मेरे विमान में बैठिये । मैं आपको यथास्थान पहुंचा दूंगा।"
कुन्ती ने कहा- अब हमें द्वैत वन में जाना है ।
देव ने उन्हें दूत उन में पहुंचा दिया और प्रणाम कर चला गया । पाण्डव-परिकार द्वैत वन में रह कर काल-निर्थ मन करने लगा।
पांडवों को मारने दुर्योधन चला और बंदी बना
" दुर्योधन को मालूम हुआ कि उसके हृदय का स्यूल पारू इव-परिवार द्वैत वन में हैं, तो वह अपना दलबल ले कर द्वैत वन की ओर चला । साथ में कर्ण, शकुनि और दुःशासनादि भी थे। उसने इस बार पाण्डव-परिवार को अपनी आँखों के सामने समाप्त करने का निश्चय कर लिया था। दुर्योधन के साद उस की रानी शान मत्ती भी थी । उन्होंने गोकुल का निरीक्षण करने के लिए जाने का प्रचार किया था, किन्तु बुप्त उद्देश्य पाण्डवविनाश का ही था । वे द्वैत का में पहुँचे । दंत वन के एक प्रदेश में अत्यन्त समभीय स्थान
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