Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अरिष्टनेमिजी -- पूर्वभव
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भरतक्षेत्र के चक्रपुर नगर में सुग्रीव नाम का सुयोग्य राजा राज्य करता था । उसकी यशस्वी रानी की कुक्षी से सुमित्र नामका पुत्र उत्पन्न हुआ और भद्रा नाम की रानी से पद्म नाम का पुत्र जन्मा । सुमित्र का जन्म पहले हुआ था और पद्म का कुछ कालान्तर से । सुमित्र गम्भीर, विनीत तथा वात्सल्यादि उत्तम गुणों से युक्त था, किंतु पद्म इससे उलटे स्वभाव वाला दुर्गुणी था । उसकी माता भद्रा भी अधम विचारों वाली थी । भद्रा ने सोचा - - " सुमित्र के जीवित रहते मेरा पुत्र राजा नहीं हो सकेगा, इसलिए सुमित्र को मार डालना चाहिए ।" इस प्रकार दुष्ट विचारों को लिए हुए वह सुमित्रकुमार को मारने का उपाय और अवसर की ताक में रहने लगी। एक दिन उसने भोजन में तीव्र विष मिला कर सुमित्र को खिला दिया। राजकुमार विष के प्रभाव से मूच्छित हो गया । राजा ने कुमार का विष उतारने के बहुत उपाय किये, किन्तु सफल नहीं हुआ । नगर भर में हाहाकार मच गया । सभी लोग छोटी रानी भद्रा की निन्दा करने लगे । अपनी निन्दा सुन कर भद्रा लज्जित हुई । उसका किसी को मुँह दिखाना कठिन हो गया । वह अवसर पा कर राजभवन से निकल कर बन में चली गई । इधर राजकुमार सुमित्र की दशा गिरती जा रही थी । राजा, मन्त्रीगण और नागरिकों पर अनिष्ट की आशंका छाई हुई थी ।
सभी उदास, हतोत्साह एवं निराश थे । राजा का मुख आँसुओं से भींजा हुआ था । उस समय राजकुमार चित्रगति विमान में बैठ कर आकाश में भ्रमण कर रहा था। वह उस समय उसी नगर पर उड़ रहा था । ध्यानपूर्वक देखने पर उसने इस नगर को शोक-संतप्त देखा । उसने विमान भूमि पर उतारा और राजकुमार सुमित्र को मरणासन्न जान कर तत्काल राजभवन में आया और विषनाशक विद्या से मन्त्रित जल का सिंचन कर कुमार का विष उतारा । कुमार चेतना प्राप्त कर सावधान हुआ । नरेश और सभी लोग प्रसन्न हुए । राजकुमार सुमित्र आश्चर्य करने लगा । उसने पूछा - " यह वया हो रहा है ? आप सब मुझे घेर कर क्यों खड़े हैं ? मैं अबतक क्यों सोता रहा ? ये महानुभाव कौन हैं ?" राजा ने कहा--“ पुत्र ! तुम्हारी छोटी माता ने तुम्हें विष दे कर मारने का महापाप किया । तुम विष के प्रभाव से मूच्छित थे । तुम्हें बचाने के हमारे सभी प्रयास व्यर्थ हो चुके थे । हम तुम्हारे जीवन की आशा त्याग चुके थे । किंतु इन महापुरुष ने एक देव की भाँति हमारी सहायता की। अपनी विद्या के बल से तुम्हारा समस्त विष उतार कर स्वस्थ कर दिया । तुम्हें जीवन दान देने वाले ये ही महापुरुष हैं ।"
राजकुमार सुमित्र ने कहा--" मैं भाग्यशाली हूँ । मुझे विष देने वाली माता ने मुझ पर उपकार किया है । इसीसे मैं इन महापुरुष की कृपा का पात्र बना और इनके
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