Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र ......
खेल को बन्द कर दो । स्वामिन् ! महापुरुषों ने इसे 'कुव्यसन' कहा है और इसके दुष्परिणाम बताये हैं । यह सब प्रत्यम हो रहा है। खल-खेल में राज्य गँवा रहे हो । इतनी आसक्ति किस काम की ? जिस धरा को अनेक भयानक युद्धों और लाखों मनुष्यों के रक्तपात से प्राप्त की, उसे खेल-खेल में गवा कर हँसी का पात्र मत बनो-देव !"
दमयंती की करुण-प्रार्थना भी नल को नहीं डिगा सकी। वहाँ से हट कर दमयंती अपने कुल-प्रधानों के पास गई और कहने लगी--"अपने स्वामी को इस विनाशकारी खेल से रोको।" प्रधानों ने भी प्रार्थना की, किंतु नल ने किसी की बात नहीं मानी और खेल में हारते-हारते, राज्य और दमयंती सहित सारा अन्तःपुर भी हार कर दरिद्र बन गया। अपने अंग के आभूषण भी द्यूतार्पण कर दिये । नल को दरिद्र बना कर कुबर ने कहा
- “अब आपका राज्य भवन और किसी भी वस्तु पर कोई अधिकार नहीं रहा । इसलिए अब आपको यहां से चला जाना चाहिए।"
नल ने कहा;-"पुरुषार्थी को लक्ष्मी प्राप्त करना अधिक कठिन नहीं होता, किंतु तुझे घमण्ड नहीं करना चाहिए।"
नल अपने पहिने हुए वस्त्रों से ही वहां से निकल कर जाने लगा। नल को जाता हुआ देख कर दमयंती भी उसके पीछे जाने लगी। दमयंती को जाती देख कर कुवर क्रोधपूर्वक बोला;--
__ "दमयंती ! मैने तुझे दांव पर जीता है । अब न नल की पत्नी नहीं रही : तुझ पर मेरा अधिकार है । बस, तू अन्तःपुर में चल और अन्तःपुर को सुशोभित ,
कुबर के दुष्टतापूर्ण वचन सुन कर मन्त्री आदि शिष्ट-जनों ने कुबर में कहा-- ___ "दमयंती सती है । यह दूसरे पुरुष की छाया का भी स्पर्श नहीं करती। इसलिए इसको रोकने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए। कथा ज्येष्ठ-बन्धु की भार्या तो माता के समान होती है । कुलीन व्यक्ति उसे तुच्छदृष्टि से भी नहीं देखते, तब राज्य-परिवार में और राज्याधिकार पाने वाले व्यक्ति के मुंह से ऐसे शब्द नहीं निकलने चाहिए । यदि कुछ दुःसाहस किया, तो सती का कोप तुम्हें नष्ट कर देगा । अब तुम मभ्य तापूर्वक इन्हें बिदा करो और इन्हें पाथेय सहित एक रथ भी दो।"
मन्त्रियों के परामर्श से कुबर ने दमयंती को जाने दिया और पाथेय महित ग्ध भी दिया। नल ने पाथेय और रथ लेना अस्वीकार करते हुए कहा--
"मैं अपना आधे भरत-क्षेत्र का राज्य छोड़ कर जा रहा हूँ, तब यि बयोल और
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