Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पाण्डु को राज्याधिकार
विचित्रवीर्य के मरणोपरान्त हस्तिनापुर के राज्याधिकार का प्रश्न उपस्थित हुआ । अब भीष्मदेव को राज-सिंहासन पर बिठाने का प्रयत्न होने लगा । किन्तु वे इस सुझाव पर विचार भी नहीं करना चाहते थे । विचित्रवीर्य के तीनों पुत्रों की शिक्षा भीष्मदेव के सान्निध्य में हुई थी । धृतराष्ट्र सब से बड़ा था। भीष्मदेव ने उससे राजा बनने का कहा, तो उसने कहा--" पूज्य ! में तो अन्धा हूँ। आप पाण्डु को राज्यभार दीजिये । वह योग्य भी है ।" पाण्डु का राज्याभिषेक किया गया । भीष्मदेव को राज्य का संचालन पूर्ववत् करना पड़ा । वे धृतराष्ट्र से परामर्श कर राज्य कार्य करने लगे । पाण्डु भी राज्य का कार्य करता और अपना अनुभव बढ़ा रहा था ।
कालान्तर में गान्धार देश के राजा सुबल का पुत्र शकुनी अपनी आठ बहिनों को साथ ले कर हस्तिनापुर आया और उन आठों का लग्न धृतराष्ट्र के साथ कर दिया ।
पाण्डु का कुन्ती के साथ गन्धर्वलग्न
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धृतराष्ट्र का विवाह होने के बाद पाण्डु का विवाह करना था । भीष्मदेव किसी योग्य राजकुमारी की शोध में थे । वे एक दिन पाण्डु राजा के साथ नगरचर्या कर रहे थे कि उन्हें एक विदेशी चित्रकार मिला। उन्होंने उसके चित्रपट्ट देखे। उनमें देवांगना जैसी एक अनुपम सुन्दरी का चित्र भी था । भीष्म ने चित्रकार से उसका परिचय पूछा। चित्रकार बोला
" मथुरा नगरी के राजा अन्धकवृष्णि के समुद्रविजयादि दस दशार्ह पुत्र हैं और उस दस बन्धुओं के एक छोटी बहिन राजकुमारी कुन्ती है । उस परम सुन्दरी का यह चित्र है । इस सुन्दरी का जन्म लग्न देख कर किसी ज्योतिषी ने कहा था कि यह कन्या चक्रवर्ती के समान पुत्र को जन्म देगी । यह राजकुमारी विदुषी, कलाओं से परिपूर्ण एवं सद्गुणी है। युवावस्था प्राप्त होने पर राजारानी को इसके योग्य वर की चिन्ता हुई । राजा अन्धकवृष्णि ने अपने ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय को पुत्री के उपयुक्त वर खोजने की आज्ञा दी । समुद्रविजयजी ने अपने विश्वस्त सेवकों को वर की खोज करने विभिन्न दिशाओं में भेजा, उनमें से एक मैं भी हूँ। में चित्रकार भी हूँ । सफलता प्राप्त करने के लिए मैंने राजकुमारी का रूप आलेखित किया और घर से निकल पड़ा। अपने मार्ग में आती हुई राजधानियों में होता हुआ और राजवंशों तथा राजकुमारों का परिचय प्राप्त करता हुआ मैं यहाँ आ
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