Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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समय राज्य छोड़ कर निकल जाओ और राज्य की सीमा से बाहर चले जाओ । यदि तुम्हें युद्ध करना है, तो अविलम्ब सामने आओ। परन्तु स्मरण रहे कि मेरा अमोघ बाण तुम्हें जीवित नहीं रहने देगा और तुम्हारा परिवार भी तुम्हारे पाप का फल भोगेगा ।" दूत की बात सुन कर विद्युत्वेग क्रोधाभिभूत हो गया और दूत से बोला
" अरे ओ धृष्ट ! क्यों बढ़चढ़ कर बोलता है । जा तेरे स्वामी से कह कि तेरा बल मनुष्य पर चल सकता है, विद्याधर पर नहीं । क्यों सोये हुए सिंह को जगा कर मृत्यु को न्यौता दे रहा है ?"
तीर्थंकर चरित्र
विद्युत्वेग की गर्वोक्ति सुन कर अर्जुन युद्ध के लिए तत्पर हो गया। उधर विद्युतवेग भी आया और युद्ध छिड़ गया । घमासान युद्ध के चलते ही मणिचूड़ की सेना के पांव उखड़ गए । वह विद्युत् वेग की सेना के भीषण प्रहार को सहन नहीं कर सकी और रणक्षेत्र छोड़ कर भाग गई । अपने पक्ष की दुर्दशा देख कर अर्जुन आगे आया और अपने बाणों की अनवरत वर्षा से विद्युत्वेग को घायल करने लगा । विद्युत्वेग समझ गया कि अर्जुन के प्रहार आगे मेरा जीवित रहना असंभव है । वह भाग गया और उसकी सेना अर्जुन की शरण में आई। इसके बाद अर्जुन ने मणिचूड़ के साथ नगर में प्रवेश किया । नागरिकों ने अपने राजा और अर्जुन का अपूर्व सत्कार किया । पुनः राज्यारोहण का भव्य उत्सव हुआ और मणिचूड़ पूर्ववत् राजा हो गया । वह अर्जुन को अपना महान् उपकारी मानने लगा ।
हेमांगद और प्रभावती का उद्धार
थोड़े दिन ठहर कर अर्जुन वहाँ से चल दिया और विमान में बैठ कर आकाशमार्ग से यात्रा करने लगा। चलता चलता वह एक निर्जन वन में पहुँचा। उसने एक महात्मा को वहाँ ध्यानस्थ देखा। वह नमस्कार कर के उनके समीप बैठ गया । ध्यान पूर्ण होने पर महात्मा ने अर्जुन को धर्मोपदेश दिया । धर्मोपदेश सुन कर अर्जुन बहुत प्रसन्न हुआ और महात्मा को वन्दना नमस्कार कर वाहनारूढ़ हो कर आगे बढ़ा | चढते-चलते वह एक वन में पहुचा । वहाँ उसे किसी का आॠन्द सुनाई दिया । वह रुका और अपने दूत को जानकारी लेने के लिए उधर भेजा । दूत ने लौट कर कहा-
'हिरण्यपुर के हेमांगद राजा की रानी प्रभावती के रूप में आसक्त हो कर किसी
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