Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीथङ्कर चरित्र
अर्जुन ने हेमांगद को चिता में से खिच कर बाहर निकाला और उसे वास्तविक प्रभावती दिखाई। अपनी प्रिया को देखते ही हेमांगद उससे लिपट गया। उसे अर्जुन का उपकार मानने का भान ही नहीं रहा । चिता बुझा दी गई । अर्जुन चिता पर पड़ी उस छलनामयी प्रभावती को देखने लगा। इतने में वह चिता पर से उठी और दौड़ कर वन में चली गई। सभी लोग इस दृश्य को देख कर चकित रह गए । हेमांगद तो प्रभावती में ही मग्न था। प्रभावती के सावधान करने पर हेमांगद उसे छोड़ कर अर्जुन के चरणों में झुका और फिर बाहों में भर कर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने लगा। उसने प्रभावती प्राप्त करने का वृत्तांत पूछा । अर्जुन के दूत ने कहा--
"वैडूर्यपूर के राजा मेघनाद ने रानी का हरण किया था। वह रानी को हेमकूट पर्वत । पर ले गया और प्रेम-याचना करने लगा। इसे महारानी बनाने का प्रलोभन दिया। किन्तु सती प्रभावती ने उसकी बहुत भर्त्सना की और अपने से दूर रहने की चेतावनी दी। मेघनाद रानी को अनुकूल बनाने के लिए भांति-भाँति से अपना स्नेह जताने लगा और प्रलोभन देने लगा, किन्तु पानी उसकी भर्त्सना ही करती रही । इतने में हम पहुँच गए । मेरे स्वामी ते प्रभावत। की दृढ़ता और सतीत्व देख कर मेघनाद को ललकारा । दोनों का द्वंद्व युद्ध हुआ । अन्त में मेघनाद घायल हो कर गिर पड़ा और मूच्छित हो गया। स्वामी ने उसका उपचार कर के सावधान किया। स्वामी का परिचय पा कर मेघनाद चरणों में झुका और रानी को बहिन बना कर परस्त्री-गमन के त्याग की प्रतिज्ञा की। साथ ही उसने कहा--" आप शीघ्र ही जाइए। हेमांगद को छल कर मारने के लिए मैने प्रता रणी विद्या के बल से कृत्रिम प्रभावती भेजी है। विलम्ब होने पर कहीं अनिष्ट नहीं हो जाय।" मेघनाद की बात सुन कर हम उसी समय लोटे और यहाँ आये । यदि हमें विलम्ब हो जाता, तो महान् अनर्थ हो जाता। आप छले गये थे।"
____ अर्जुन के सपकार के भार से हेमांगद पूर्णरूप से दब गया। उसने अर्जुन से निवेदन किया--
"महाराज ! मेरा जीवन ही अब आपका है । मेरा समस्त राज्य आपके चरणों में अर्पित है । इसे स्वीकार कर के मुझे कुछ अंशों में उपकृत करने की कृपा करें । मैं जीवन-पर्यन्त आपका अनुचर रहूँगा।"
___“भद्र ! तुम्हारे साज्य की मुझे आवश्यकता नहीं । तुम स्वयं सुखपूर्वक न्याय-नीति से राज करो। प्रभावती मेरी धर्म की बहिन है। मेरे मित्र मणिचूड़ की बहिन, मेरी भी बहिन हुई । मैने तो अपने कर्तव्य का पालन किया है । तुम सब सुखी रहो।"
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