Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सुभद्रा के साथ लग्न और हस्तिनापुर आगमन
अर्जुन, हेमांगद आदि उस वन में ही हर्षानुभूति में मग्न थे कि बहिन के अपहरण और बहनोई के वन-गमन के दुःखद समाचर सुन कर, मणिचूड़ भी खोज में भटकता हुआ वहीं
आ पहुंचा । अर्जुन द्वारा बहिन की प्राप्ति आदि सभी वर्णन सुन कर वह अत्यन्त प्रसत्र हुआ। स्नेहालिंगन के बाद सभीजन हेमांगद के साथ उसके राजभवन में आये । राजधानी में उत्सव मनाया जाने लगा। राजा और प्रजा सभी आनन्दोल्लास में मग्न थे। इतने में द्वारपाल ने आ कर सूचना दी-"हस्तिनापुर से एक राजदूत आया है । वह तत्काल दर्शन करना चाहता है।" हस्तिनापुर का नाम सुन कर मर्जुन चौंका और दूत को बुलाया । दुत ने प्रणाम कर निवेदन किया;
___ "बीरशिरोमणि धनंजयदेव ! महाराजाधिराज, महारानी और सारा परिवार आपके विरह से दुःखी हैं । महाराजा की वृद्ध अवस्था है । आपके विरह ने उनकी सुखहाति हर ली । सभी चाहते हैं कि आप शीघ्र लौट कर उनकी लुप्त प्रसन्नता को पुनः शन कराएं। आपके बान्धव आपके बिना एक प्रकार की शन्यता अनुभव कर रहे हैं। आपके प्रस्थान के साथ ही हस्तिनापुर के त्योहार और उत्सव भी बिदा हो गए। राजपरिवार ही नहीं, प्रजा भी चिन्तित रहती है । आपकी खोज के लिए कई दूत भेजे गए । मेरा सद्भाग्य है कि में आपके दर्शन कर कृतार्थ हुना । अब शीघ्र पधार कर हस्तिनापुर को कृतार्य करें।"
दूत का निवेदन सुन कर अर्जुन ने कहा- .
"भाई ! में आ रहा हूँ । तुम शीघ्र आगे पहुंच कर माता-पितादि ज्येष्ठजनों से मेरा प्रणाम निवेदन करो और मेरे आने की सूचना दे कर उन्हें प्रसन्न करो।"
दूत लौट गया। अर्जुन ने राजा हेमांगद की अनुमति ले कर मणिचूड़ के साथ आकाश-मार्ग से प्रस्थान किया। मार्ग में सौराष्ट्र देश की द्वारिका नगरी में श्रीकृष्ण-वासुदेव से मिलने के लिए ठहरे। कुछ दिन कहाँ रुके। श्रीकृष्ण ने अर्जुन के साथ अपनी बहिन सुभद्रा के लग्न कर दिये । कुछ दिन वहाँ ठहर कर विपुल दहेज और विशाल सेना के साथ प्रस्थान कर हस्तिनापुर आये ! माता-पिता और भ्रातृजनादि राजपरिवार ही नहीं, सारे नगर और दूर-दूर तक की जनता ने अर्जुन का भव्य स्वागत कर के नगर-प्रवेश कराया । हर्षोल्लास का वेग राज्य भर में व्याप्त हो गया। सभी ओर उत्सव मनाये जाने लगे।
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