Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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हेमांगद और प्रभावती का उद्धार estadosteste deste stastasesteste testostesttestedestestostesteslestestostese dessestestostestabasesteste deslodestestostesededodestastasesteste stedestestestestostes
दुष्ट ने उसका हरण कर लिया है। रानी की चिल्लाहट सुन कर राजा, नींद से जागा और रानी को छुड़ाने के लिए खड्ग ले कर दौड़ा। उसके सैनिक भी दौड़े, किन्तु रानी का कहीं पता नहीं लगा। राजा खोज करता हुआ यहाँ आयां । उसे रानी की वेणी के फूल आदि मिले । वह निराश हो कर आक्रन्द करता हुआ भटक रहा है।"
दूत की बात सुन कर अर्जुन ने सोचा--"प्रभावती तो मेरे मित्र मणिचूड़ की बहिन है। उसकी खोज अवश्य करनी चाहिये।" अर्जुन हेमांगद के निकट आया और रानी को खोजने का आश्वासन दे कर धैर्य बंधाया। फिर आप विद्या के प्रभाव से आकाशमार्ग से उस ओर गया, जिस ओर प्रभावती ले जाई गई थी। हेमांगद आश्वस्त हो कर वहीं रहा। थोडी देर में एक घडसवार उसके निकट आ कर बोला--"आपको एक ऋषिश्वर बुलाते हैं और आपकी रानी भी वहीं है, चलिये । राजा उत्साहित हो कर उठा और उसके साथ चला। उसने ऋषि के आश्रम में प्रभावती को देखा । हर्षावेश में वह प्रभावती की ओर दौड़ा। इतने में प्रभावती चिल्लाती हुई बोली-“हे प्राणनाथ ! बचाओ।" वह भूमि पर गिर कर मूच्छित हो गई। उसके पास से एक विषधर निकल कर बिल में घुस गया। प्रभावती के शरीर का रंग नीला होता जा रहा था। राजा के हृदय को असह्य आघात लगा। शोक के आवेग से वह भी मूच्छित हो गया । आश्रम के तपस्वियों ने मूर्छा दूर करने का प्रयास किया, जिससे हेमांगद तो सावधान हो गया, परंतु प्रभावती वैसी ही रही । हेमांगद प्रिया-वियोग के असह्य दुःख से अभिभूत हो गया और रानी के शव को बाहों में भर कर जोर-जोर से आक्रन्द करने लगा। उसका करुण-विलाप श्रोताओं के हृदय को भी द्रवीभूत कर रहा था। राजा के अनुचर भी रुदन कर रहे थे। अनुचरों ने राजा को ढाढ़स बंधाने की चेष्टा की, परन्तु राजा का शोक कम नहीं हुआ। राजा, पत्नी के साथ जीवित ही जल-मरने को तत्पर हो गया। उसने किसी की बात नहीं मानी । चिता रची गई। रानी के शव को गोद में ले कर राजा चिता पर बैठ गया। अनुचरगण आक्रन्द कर रहे थे। उन्होंने भी जल-मरने के लिये एक चिता बनाई। राजा और रानी की चिता में अग्नि प्रज्वलित की गई।धूम्रस्तंभ आकाश में ऊँचा उठ रहा था। उधर अर्जुन प्रभावती को मुक्त करा कर आकाश-मार्ग से इस ओर ही आ रहा था। उसने चिता में राजा-रानी और आसपास रोते हुए अनुचरों को देख कर आश्चर्यपूर्वक पूछा"यह क्या हो रहा है ?" . अनुचरों ने कहा--" महारानी मिल गई, किन्तु सर्प के काटने से वह मृत्युवश हो गई, अब महाराज, महारानी के साथ ही जल कर मर रहे हैं।"
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