Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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कर्ण का जाति कुल
" अरे सारथिपुत्र ! धनुष एक ओर रख दे । तेरे हाथों में घोड़े की लगाम होनी चाहिए । चल हट यहाँ से । तू अंगदेश का राज्य पाने का अधिकारी नहीं हैं । एक जम्बूक, वनराज नहीं हो सकता ।"
လက်လက်တော်တ်ာတော်တော်လက်တက်ရောက်လာသောလက်တော်တို့ကို
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भीम की गर्जना सुन कर विश्वकर्मा सारथि बोला; -
" सभाजनों ! कर्ण की कुलीनता के विषय में व्याप्त प्रसिद्धि असत्य है, भ्रममात्र है । वास्तव में यह मेरा पुत्र नहीं है । यह दैवयोग से ही मेरे हाथ लगा है। मैं इसका पालक एवं पोषक अवश्य हूँ, जनक नहीं । घटना यह घटी कि मैं प्रातःकाल स्नान करने के लिए गंगा के तीर पर गया था। वहाँ मैने एक पेटी बहती हुई अपनी ओर आती देखी । मैंने वह पेटी निकाल ली और अपने घर ले गया। पेटी खोलने पर उसमें मुझे एक तेजस्वी बालक दिखाई दिया। उसके कानों में देदीप्यमान कुंडल पहने हुए थे । सन्तानसुख से वंचित मेरी पत्नी, उस बालक को देख कर बहुत प्रसन्न हुई । उसकी मनोकामना पूरी हुई। बालक कुंडल पहने हुए था और पेटी में भी वह अपना हाथ, कान पर रखे हुए था, इसलिए हमने उसका नाम "कर्ण” रख दिया। जिस दिन वह बालक हमें मिला, उस रात्रि को स्वप्न में सूर्य के दर्शन हुए। इसलिए इसका दूसरा नाम 'सूर्यपुत्र' भी प्रसिद्ध हुआ । इसके लक्षण बचपन से ही असाधारण दिखाई देने लगे थे। यह देख कर में विचार करता कि इसका जन्म किसी उच्च कुल में हुआ होगा । आज में इसके पराक्रम देखता हूँ तो मेरी यह धारणा दृढ़ हो रही है। आपको इसका तिरस्कार नहीं करना चाहिए ।"
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विश्वकर्मा का वक्तव्य सुन कर सभाजन आश्चर्य करने लगे ।
महारानी कुंती यह सब सुन कर अवाक् रह गई। उसके हृदय में कर्ण के प्रति अनुराग उत्पन्न हुआ । उसे विश्वास हो गया कि यह मेरा ही पुत्र है । मैंने ही लोक-निन्दा के भय से इसे पेटी में बन्द करवा कर गंगा में बहा दिया था और कुण्डल की जोड़ी भी पहिनाई थी । अहा ! में कितनी भाग्यवती हूँ। अब मुझे इस गुप्त-भेद को प्रकट कर देना चाहिए। फिर विचारों ने पलटा खाया और उचित समय आने पर पति के सामने यह भेद खोलने का निश्चय कर वह मौन रह गई ।
'कर्ण सारथि - पुत्र नहीं, किसी उत्तम कुल में उत्पन्न हुआ है, यह जान कर दुर्योधन ने कहा
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" कर्ण उत्तम कुल का है । अब अर्जुन को इसके साथ युद्ध करना चाहिए । दुर्योधन के वचन निकलते ही पाँचों पांडव शस्त्र ले कर युद्ध के लिए आ खड़े हुए।
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