Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र
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करते हुए भिड़ने ही वाले थे कि कृपाचार्य ने कर्ण को सम्बोधित कर कहा; -
" हे कर्ण ! अर्जुन उच्चकुलोत्पन्न है । जिस प्रकार कल्पवृक्ष की उत्पत्ति सुमेरु पर्वत से होती है, उसी प्रकार अर्जुन की उत्पत्ति पाण्डु नरेश से हुई है । जिस प्रकार मोती की उत्पत्ति शीप में होती है, उसी प्रकार अर्जुन, महारानी कुन्ती के गर्भ से उत्पन्न हुआ है और साथ ही यह वीरोत्तम भी है, किन्तु तू वैसा कुलोत्तम नहीं है। बता तेरी उत्पत्ति किस कुल से हुई है ? जब तक यह स्पष्ट नहीं हो जाय, तब तक अज्ञातकुल- शील वाले के साथ अर्जुन का युद्ध नहीं हो सकता । तुझे अपना कुल-शील इस सभा में बताना होगा ।"
कृपाचार्य की उठाई हुई बाधा का निवारण करने के लिए दुर्योधन ने कहा; - " आचार्यश्री ! मनुष्य ख्यातिप्राप्त कुल, जाति अथवा पद से बड़ा नहीं होता, बड़ा होता है गुणों से । कमल की उत्पत्ति कीचड़ से होती हैं, तथापि वह अपनी उत्तम सुगन्ध से लोकप्रिय होता है। इसी प्रकार यदि कोई पुरुष नीचकुलोत्पन्न है, तो भी वह अपने पराक्रम एवं सद्गुणों से उच्च स्थान प्राप्त करता है । कर्ण भी सद्गुणी और वीरोतम है । इसलिये यह अर्जुन से युद्ध करने में समर्थ है। इस पर भी यदि आप कहें कि --
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'यह राजा या राजकुमार नहीं है, इसलिए अर्जुन की बराबरी नहीं कर सकता, तो मैं आज ही इसे अंग देश के राज्य का अभिषेक कर के वहाँ का अधिपति बनाता हूँ ।" इतना कह कर उसने पुरोहित को बुलाया और तीर्थोदक से कर्ण का राज्याभिषेक कर दिया । अपमान के स्थान पर अपना सम्मान और राज्यदान ने कर्ण को दुर्योधन का अत्यंत उपकृत बना दिया । वह भावाभिभूत हो कर बोला
" मित्रवर ! आपने मुझ पर बड़ा हूँ । आपके लिए मेरे प्राण भी सदैव प्रस्तुत " मित्र कर्ण ! मैं तुमसे यही वचन जीवनपर्यन्त अक्षुण्ण रहे।"
भारी उपकार किया। में आपका अत्यंत ऋणी रहेंगे। अधिक क्या कहूँ ?" प्राप्त करना चाहता हूँ कि अपना मैत्रीसम्बन्ध
कर्ण ने वचन दिया । इसके बाद राज्याभिषेक पूर्ण होने पर कर्ण, अर्जुन से युद्ध करने के लिए तत्पर हुआ । उस समय कर्ण का पिता विश्वकर्मा अत्यंत हर्षित हो कर उठा और कर्ण को आलिंगन बद्ध कर चूमने लगा। लोगों ने देखा कि कर्ण, सारथि का पुत्र है । यह देख कर भीम गर्जना करता हुआ बोला
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x दुर्योधन को राज्याभिषेक करने का अधिकार ही क्या था ? उसका खुद का राज्य नहीं, तो वह ऐसा कैसे कर सकता था ? - सं. ।
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