Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कर चरित्र
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साथ-साथ खेलते, शिक्षा ग्रहण करते और बढ़ते थे।
दुर्योधन जब युवावस्था में आया, तब धृतराष्ट्र के मन में उसका भविष्य जानने की इच्छा हुई । एकबार राजसभा में कुछ ज्योतिषो आये । वार्तालाप के बाद धृतराष्ट्र ने दुर्योधन के भविष्य के विषय में पूछा। धृतराष्ट्र के प्रश्न करते ही कुछ अपशकुन हुए। भविष्यवेत्ताओं ने विचार कर विदुर से धीरे से कहा--
"दुर्योधन राज्याधिपति होगा अवश्य, परन्तु इसके निमित से आपके कुल का संहार होगा, इतना ही नहीं, एक महायुद्ध होगा, जिसमें करोड़ों मनुष्यों का संहार हो जायगा । दुर्योधन का राज्यकाल महान् अनिष्टकारी होगा।"
विदुर ने यह बात गुप्त नहीं रखी और सभा में सब के सामने कह डाली। इससे धृतराष्ट्र के मन को आघात लगा। उसने उन ज्योतिषियों से अरिष्ट-निवारण का उपाय पूछा, तो उन्होंने कहा--'यदि दुर्योधन इस राज्य को छोड़ कर अन्यत्र चला जाय, तो रक्षा हो सकती है ।"
धृतराष्ट्र मौन रहा । धृतराष्ट्र को मौन देख कर पाण्डु नरेश बोले
"भाई विदुर ! पुत्र से कुल की वृद्धि होती है, भय नहीं । दुर्योधन भी पुण्यात्मा है। यद्यपि युधिष्ठिर का जन्म पहले हुआ, परन्तु गर्भ में तो दुर्योधन ही पहले आया था । यह ज्येष्ठ है और उत्तम है । युधिष्ठिर का जन्म पहले हुआ, इसलिए वह राज्याधिकारी हुआ, किन्तु उसके बाद तो दुर्योधन ही राज्य, सीन होगा। मेरे लिए तो दोनों समान हैं "
पाण्डुराजा के वचनों से धृतराष्ट्र के हृदय में तत्काल तो शान्ति हुई, परन्तु भन ही मन उसके मन में भेद एवं द्विभाव उत्पन्न होने लगा। वह पुत्र दुर्योधन को शीघ्र ही राज्याधिकारी देखना चाहता था। उसके सौ पुत्र थे। उसकी पुत्री दुःशल्या, सिन्धुराज जयद्रढ़ को ब्याही थी। उसका जामाता भी शक्तिशाली था। कौरवों के मन में पाण्डवों के प्रति विद्वेष का बीज पनपने लगा ।
दुर्योधन का डाह और वैरवृद्धि
सौ कौरव और पाँच पाण्डव, ये १०५ युवक बड़े ही वीर पराक्रमी और प्रभावशाली थे। सभी साथ-साथ नगर के विभिन्न बाजारों, उद्यानों और रम्य स्थानों पर जाते, हँसते, खेलते और विचरते रहते । विद्या और कला का विकास भी उनमें हो चुका था।
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