Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र Posdededsaddardasdetakeddedeseddddedit dededesideseseddddededeseddedesesesesedeodeseseksistakesleshsesex नरेश ने इस आयोजन में हस्तिनापुर नरेश को आमन्त्रण नहीं दिया था। भीष्म ने इसे राज्य का अपमान माना और राजकुमारियों का हरण करने के विचार से, गुप्तवेश में आया । उसका रथ इस मण्डप के बाहर ही खड़ा था । जब राजकुमारिये निकट आई, तो भीष्म ने भीड़ में से निकल कर उनको उठाया और ले जा कर रथ में बिठाया । कायाएँ भयभीत हो गई थी। भीष्म ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा--" तुम निर्भय रहो । में कोई डाकू नहीं हूँ । हस्तिनापुर नरेश का भाई हूँ। हस्तिनापुर का राज्य बहुत बड़ा है । नरेश रूप गुण और कला में अद्वितीय हैं। मैं तुम्हें उनकी रानियाँ बनाऊंगा । उन देव के समान प्रभावशाली के आगे यहाँ बैठे हुए सभी राजा किंकर के समान लगते हैं। तुम जीवनभर आनन्द करोगी।"
भीष्म ने सोचा--" यदि बिना युद्ध के यों ही ले जाऊँगा, तो लोगों में मैं — डाकू' या 'उठाईगीर' समझा जाऊंगा।" उन्होंने उद्घोषणा की :--
“ओ राजा-महाराजाओ ! मैं हस्तिनापुर के महाराजाधिराज विचित्रवीर्य के लिए, इन राजकुमारियों को संहरण कर के ले जा रहा है। यदि किसी में साहस हो, तो गांगेय के सम्मुख आ कर युद्ध करे और कन्याओं को मक्त करावें।"
राजकुमारियों का हरण होते ही भण्डार में एक हलचल मच गई । काशी नरेश अपने योद्धाओं को सम्बोध कर--"पकड़ो, मारो " आदि आदेश देने लगे और स्वयं शस्त्रसज्ज होने लगे । अन्य नरेश आश्चर्यान्वित हो एक दूसरे से पूछने लगे- 'कौन था वह, कहां ले गया? हमें क्या करना चाहिए ? अभी काशी के योद्धा उसे पकड़ लेंगे, वह अकेला ही है । हमें जाने की आवश्यकता ही क्या हैं ?"
वे सब विचार ही कर रहे थे कि भीष्म की सिंह-गर्जना सुनाई दो। अब तो सभी राजाओं को भी सन्नद्ध हो कर युद्ध के लिए आना ही पड़ा । कुल तो भीष्म का भीम. गर्जना से ही भयभीत हो गए, कुछ भीष्म के पराक्रम से परिचित थे, वे पीछे खिसकने लगे । लेकिन कायरता के कलंक और अपमान के भय से, अन्य साहमी राह की और काशी नरेश के साथ उन्हें भी यद्ध में सम्मिलित होना पडा।एक और भीम अकल ओर शस्त्रसज्ज सेना सहित अनेक राजा । भयंकर संग्राम हुआ। बाणवर्षा से भीष्म का सारा रथ आच्छादित हो गया, फिर भी उनका अमोघ प्रहार शत्रुओं का घायल कर के उनके साहस को समाप्त कर रहा था । शत्रुओं में शिथिलता व्याप्त हुई देख कर महावली भीष्म ने काशीराज को सम्बोधित कर कहा--
"राजेन्द्र ! शान्ति में मेरी बात सुनो । में हस्तिनापुर नरेश महाराजाधिराज
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