Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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विचित्रवीर्य का राज्याभिषेक और लग्न
४३१ hidesesesesses obstetestsiesesedesesedesesesesesesesesesedesesedesisesesbfdesisekesedesesesesevedosesbsesbsesiseshisesbobs राजा बनाया। चित्रांगद विनयपूर्वक गांगेय के निर्देशानुसार शासन करने लगा । कालान्तर में चित्रांगद को भी विजय-यात्रा करने की इच्छा हुई । उसने अपने से विमुख राजाओं के राज पर चढ़ाई की और एक के बाद दूसरे राज्य पर बिजय पाता गया। इन विजयों से उसमें से नम्रता एवं विनयशीलता निकल गई और अभिमाने जागा। वह अपने ज्येष्ठ एवं हितैषी की भी उपेक्षा करने लगा। एक बार नीलांगद नाम के एक राजा ने चित्रांगद पर चढ़ाई की। चित्रांगद अपनी पूर्व की विजयों से घमण्डी बन गया था। उसने भीष्म (गांगेय) को पुछा भी नहीं और सहसा नीलांगद के साथ यद्ध में उलझ गया। नीलांगद की युद्ध-चाल, चित्रांगद को घेर कर मारने की थी। उसने चालाकी से चित्रांगद को घेर लिया। वह उसकी सेना का संहार करता हुआ चित्रांगद के निकट पहुँचा और शस्त्र प्रहार से उसका मस्तक काट कर विजयोत्सव मनाने लगा। जब भीष्म ने चित्रांगद की मृत्यु का समाचार सुना, तो क्रोधित हुआ और युद्धभूमि में आ कर नीलांगद को ललकारा । नीलांगद का विजयोल्लास और उत्सव बन्द हो गया। पुनः युद्ध छिड़ा ओर थोड़ी ही देर में नीलाँगद धराशायी हो गया। नीलांगद के मरते ही युद्ध रुक गया । भीष्म, चित्रांगद का मस्तक ले कर हस्तिनापुर आया और शव की उत्तर क्रिया की।
विचित्रवीर्य का राज्याभिषेक और लग्न .
चित्रांगद का उत्तराधिकार विचित्रवीर्य को दिया गया और भीष्मदेव पूर्व की भांति राज्यहित में संलग्न हो गए। विचित्रवीर्य प्रकृति से विनम्र एवं विनयशील था। वह भीष्म के प्रति पूज्यभाव रखता था और उनकी आज्ञानुसार कार्य करता था। भीष्म के प्रभाव से विचित्रवीर्य का राज्य निष्कंटक हो गया। उसका कोई विरोधी नहीं रहा। अब भीष्म के मन में राजा विचित्रवीर्य का लग्न करने का विचार हुआ। वह किसी योग्य राजकुमारी की खोज में रहने लगा।
काशीपुर नरेश के तीन पुत्रियाँ थीं-१ अम्बा २ अम्बिका और ३ अम्बालिका । तीनों रूप लावण्य और उत्तम गुणों से समृद्ध थी। उनके लग्न के लिए राजा ने स्वयंवर का आयोजन किया। मण्डप में अनेक राज्याधिपति और राजकुमार एकत्रित थे। तीनों राजकुमारियाँ, सखीवृन्द के साथ स्वयंवर-मण्डप में आई । उनके हाथ में वरमाला झूल रही थी। वे एक के बाद दूसरे राजा को छोड़ कर आगे बढ़ती जाती थी। दर्शकों की भीड़ जमी हुई थी। उस भीड़ में भीष्म भी छद्मवेश में आ कर मिल गया था। काशीपुर
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