Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कर चरित्र
बाहर ले गई और धक्का दे कर गिरा दिया । सेठ और ललित गंगदत्त को उठा कर फिर गुप्त स्थान पर लाये । उसे स्नान करवा कर काड़े बदले और समझा-बुझा कर स्वस्थान आये ।
कुछ दिन बाद वहाँ विशिष्ट ज्ञानी महात्मा पधारे । सेठ ने पूछा-"महात्मन् ! ललित और गगदत्त सगे भाई हैं, फिर भी इनकी माता, ललित पर तो अत्यंत प्रीति रखती है, किन्तु गंगदत्त पर तीव्र घृणा और द्वेष रखती है । गंगदत्त को वह मीठी दृष्टि से देख ही नहीं सकती। इसका क्या कारण है?" महात्मा ने कहा:--
"एक गांव में दो भाई रहते थे। बड़ा भाई कोमल स्वभाव का था और छोटा ऋर । एक बार वे गाड़ी ले कर वन में लकड़ी लेने गए । लकड़ी से गाड़ी भर कर लौट रहे थे। बड़ा भाई आगे-आगे चल रहा था और छोटा भाई गाड़ी पर बैठा हुआ बैलों को हंकाल रहा था। आगे चलते हुए बड़े भाई ने, मार्ग में एक सर्पिणी पड़ी हुई देखी । वह भाई से बोला-“मार्ग में सांपिन पड़ी है, इसे बचा कर गाड़ी चलाना।" छोटे भाई ने बड़े भाई की बात सुन कर उपेक्षा की। सर्पिणी, बड़े भाई के शब्द सुन कर आश्वस्त हो, वहीं पड़ी रही। छोट भाई के क्रूर हृदय में, सांपिन पर गाड़ी का पहिया फिरा कर, चकचूर होती हई हड्डियों की आवाज सुनने की आकांक्षा हई और उसने वैसा हो किया । स के मन में इस क्रूर मनुष्य पर तीव्र कोध आया। वह वैर-भाव में ही मर कर, इनकी माता हुई । बड़ा भाई साँपिन को बचाने वाला प्रशस्त जीव, तुम्हारा ज्येष्ठपुत्र ललित है। यह इसकी माता को अति प्रिय है और छोटा गंगदत्त है । गंगदन की क्रूरता ही उसकी माता के द्वेष का कारण बनी । कृत-कर्म का ही यह फल है।'
महात्मा से कर्मफल की दारुणता और आत्मोद्धारक उपदेश सुन कर सेठ और ललित प्रवजित हुए और संयम पाल कर महाशुक्र देवलोक में देव हुए। गंगदत्त ने भी दीक्षा ग्रहण की । उसके मन में माता का द्वेष खटक रहा था। उसने 'विश्ववल्लभ, होने का निदान किया और काल कर के महाशुक्र में देव हुआ।
ललित का जीव, देवायु पूर्ण कर वसुदेवजी की रानी रोहिणी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ । रानी ने उस रात्रि में चार महास्वप्न देखे-१ हाथी २ समुद्र ३ सिंह और ४ चंद्रमा। गर्भकाल पूर्ण होने पर रोहिणी ने पुत्र को जन्म दिया । जन्मोत्सवादि के बाद पुत्र का नाम 'राम' (विख्यात नाम-बलदेव) दिया । बलदेव बड़े हुए और सभी कलाओं में पारंगत हो गए।
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