Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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रुक्मिणी के पूर्व-भव
राजा रानी का व्यंग समझ गया और लज्जित हो कर नीची दृष्टि कर ली ।
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रानी ने कहा
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'जो स्वयं दुराचार का सेवन करता हो, उसे न्याय करने का क्या अधिकार है ? राजा तो आदर्श होना चाहिए। राजा का प्रभाव प्रजा पर पड़ता है । कदाचित् उस अपराधी ने आपका अनुकरण किया होगा ?"
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राजा बहुत लज्जित हुआ। उसी समय विक्षिप्त कनकप्रभः मधु को गालियाँ देता हुआ उधर आ निकला । चन्द्राभा ने अपने पति की दुर्दशा बताते हुए मधु से कहा-'देख लीजिए। आपके दुराचार से मेरे पति की क्या दुर्दशा हुई । इसके सुखी जीवन को आपने दुःखी बना दिया और सारा जीवन ही नष्ट कर दिया । कितना भला और सुशील पति था । शक्ति के ऐसे दुरुपयोग का भावी परिणाम अच्छा नहीं होगा ।"
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मधु को बहुत पश्चात्ताप हुआ । वह संसार से विरक्त हो गया और 'धुंधु' नामक पुत्र को राज्य दे कर महात्मा विमलवाहन के पास दीक्षा लेली । उसका भाई युवराज कैटभ भी प्रव्रजित हो गया । वे बहुत लम्बे काल तक ज्ञान, चारित्र और तप की आराधना करते हुए आयु पूर्ण कर महाशुक्र देवलोक में महद्धिक देव हुए । कनकप्रभ: भी अपना लम्बा जीवन, वैर और द्वेष में ही गँवा कर ज्योतिषी धूमकेतु देव हुआ । उसने अपने वैरी की खोज की, परंतु वह उसकी अवधि बाहर होने से दिखाई नहीं दिया । वह वहां से मर कर मनुष्य हुआ और बालतप कर के वैमानिक देव हुआ । उसने फिर अपने शत्रु की खोज की, किंतु फिर भी वह उसे नहीं पा सका । वह संसार परिभ्रमण करता हुआ पुनः धूमकेतु देव हुआ । वहाँ उसने अपने वैरी को कृष्ण की गोद में देखा और कोपानल में जलता हुआ हरण कर गया । प्रद्युम्न चरम-शरीरी और पुण्यवान् है । इसलिए वह उसे मार नहीं सका । अब वह कालसंवर विद्याधर के यहाँ सुखपूर्वक पल रहा हैं । रुक्मिणी से उसका मिलना सोलह वर्ष के बाद होगा ।
रुक्मिणी के पूर्व-भव
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सर्वज्ञ भगवान् से प्रद्युम्न और धूमकेतु के पूर्वभव का चरित्र और वैरोदय का वर्णन सुन कर नारद ने रुक्मिणी के पुत्र-वियोग का कारण पूछा । भगवान् ने कहा ; " मगध देश के लक्ष्मी ग्राम में सोमदेव ब्राह्मण रहता था । लक्ष्मीवती उसकी पत्नी
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