Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रद्युम्न कुमार और धूमकेतू के पूर्वभव का वृत्तांत
परंतु उनके माता-पिता को यह रुचिकर नहीं हुआ । वे अपने आचार-विचार में पूर्ववत् स्थिर रहे ।
अग्निभूत और वायुभूति मर कर सौधर्म देवलोक में छह पल्योपम की आयु वाले देव हुए। वहाँ की आयु पूर्ण कर के हस्तिनापुर में अर्हद्दास व्यापारी के पुत्र -- पूर्णभद्र और मणिभद्र हुए और पूर्व परिचित श्रावकधर्म का पालन करने लगे । कालान्तर में सेठ अर्हद्दास महात्मा महेन्द्रमुनि के पास दीक्षित हो गए । पूर्णभद्र और माणिभद्र, मुनियों की वन्दना करने जा रहे थे । मार्ग में उन्हें एक चाण्डाल और एक कुतिया, साथ ही दिखाई दी । उन दोनों जीवों को देख कर, दोनों बन्धुओं के मन में प्रीति उत्पन्न हुई । उन्होंने महर्षि के समीप पहुँच कर वन्दना की और पूछा --
'भगवन् ! मार्ग में चाण्डाल और कुतिया को देख कर हमारे मन में उनके लिए स्नेह क्यों उत्पन्न हुआ ?"
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महात्मा ने कहा--' 'वह चाण्डाल तुम्हारे पूर्वभव का पिता और कुतिया माता थी । तुम्हारा पिता सोमदेव मृत्यु पा कर शंखपुर का राजा हुआ । वह पर स्त्री लम्पट था । तुम्हारी माता उसी नगर में सोमभूनि ब्राह्मण की रुक्मिणी नामकी सुन्दर पत्नी थी । एकबार वह राजा की दृष्टि में आ गई। राजा उस पर आसक्त हो गया। उसने सोमभूति पर अपराध मढ़ कर बन्दी बना लिया और उसकी पत्नी को अपने अन्तःपुर में मँगवा लिया । सोमभूति का हृदय वैर एवं द्वेष की प्रचण्ड ज्वाला में जलता रहा । राजा, उस स्त्री में भोगासक्त हो कर बहुत लम्बे काल तक जीवित रहा और अन्त में मर कर प्रथम नरक में तीन पल्योपम की आयु वाला नैरयिक हुआ। वहां से मर कर वह हिरन हुआ और किसी शिकारी द्वारा मारा जा कर एक सेठ का पुत्र हुआ। वह अत्यंत कपटी था । वहाँ से मर कर वह हाथी हुआ । दैव-योग से उसे जातिस्मरण ज्ञान हुआ । उसे अपने पूर्वभव के कुकृत्य का पश्चाताप हुआ और अनशन कर के अठारह दिन तक निराहार रहा। फिर मृत्यु पा कर सौधर्म स्वर्ग में तीन पल्योपम की स्थिति वाला देव हुआ और देवाय पूर्ण कर के यह चाण्डाल हुआ है। तुम्हारी माता का जीव रुक्मिणी मर कर भव भ्रमण करती हुई यह कुतिया हुई है । पूर्व सम्बन्ध के कारण तुम्हारी उन दोनों पर प्रीति उत्पन्न हुई है ।"
अपने पूर्व जन्म का वृत्तांत सुन कर पूर्णभद्र और माणिभद्र को जातिस्मरण ज्ञान हुआ। उन्होंने जा कर उस चाण्डाल और कुतिया को प्रतिबोध दिया। दोनों जीवों ने अनशन कर लिया और मृत्यु पा कर चाण्डाल तो नन्दीश्वर द्वीप में व्यंतर देव हुआ और
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