Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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राजा शान्तनु का गंगा के साथ लग्न
का आविर्भाव हुआ। शान्तनु भी राजकुमारी के सौंदर्य पर मोहित हो गया। उसने पूछा:
“भद्रे ! क्या मैं देवी का परिचय जान सकता हूँ?" मुझे आश्चर्य हो रहा है कि जो महिलारत्न किसी भव्य राज-प्रासाद को सुशोभित कर सकती थी, वह इस वय में, निर्जन वन में रह कर तपस्विनी क्यों हुई ?" यह वय परलोक साधना के उपयुक्त नहीं है।
राजा का प्रश्न सुन कर राजकुमारी ने अपनी सखी की ओर देखा । सखी ने राजा से कहा
‘महानुभाव ! यह रत्नपुर के विद्याधरपति महाराज जन्हु की सुपुत्री राजदुलारी नंगा है । यह विदुषी है, विद्याविलासिनी है और सभी कलाओं में प्रवीण है। जब महाराजा ने इसके लिए योग्य वर का चयन करने के विषय में अभिप्राय पूछा, तो इसने स्पष्ट व ला दिया कि--"जो पुरुष सर्वगुण-सम्पन्न होने के साथ ही, सदैव मेरी इच्छा के अधीन रहने की प्रतिज्ञा करे, वही मेरा पति हो सकता है । यदि ऐसा दर नहीं मिले, तो मैं जीवनभर कुमारिका रह कर तपस्या करतो रहूंगी।" अनेक राजा और राजकुमार इसे प्राप्त करना चाहते थे, परंतु इसकी अधीनता में रहने की प्रतिज्ञा करने के लिए कोई तत्पर नहीं हुआ। इसीलिए निराश होकर यह आश्रमवासिनी हुई है । मैं इसकी सखी हूँ और इसकी परिचर्या करती हूँ।"
सखी के वचन सुन कर शान्तन प्रसन्न एवं उत्साहित होकर बोला
"सुन्दरी ! देवांगना को भी लज्जित करने वाले तुम जैसे अद्वितीय स्त्री-रत्न का दर्शन कर मैं कृतार्थ हुआ। अच्छा हुआ कि में उस मृग की खोज करते हुए यहाँ आ पहुँचा। यदि मेरा बाण नहीं चूकता और मग इधर नहीं आता, तो में इस सुयोग से वञ्चित ही रहता । वह मृग मेरा उपकारी ही हुआ है।"
“भद्रे ! मैं तुम्हारा प्रण सहर्ष पूर्ण करता हूँ और प्रतिज्ञा करता हूँ कि में सदैव तुम्हारे अधीन रहूँगा । मैं अपनी इस प्रतिज्ञा से कभी विमुख नहीं बनूंगा । यदि देवयोग से कभी मुझसे तुम्हारे वचनों और अपनी प्रतिज्ञा का उल्लंघन हो जाय, तो तुम मुझे त्याग देना । में तुम्हारे उस दण्ड का पात्र बनूंगा।"
राजा स्वयं प्रसन्न था। राजकुमारी भी-मनोकामना पूर्ण होती जान कर-- प्रसन्न हो रही थी। उसी समय महाराज जन्हु वहां आ पहुंचे। उन्होंने शान्तनु को देखा। शिष्टाचार का पालन हुआ। राजकुमारी लज्जित हो कर एक ओर खड़ी हो गई । सखी मनोरमा ने जन्हु को शान्तनु के अभिप्राय का परिचय दिया। जन्हु प्रसन्न हुआ और उस आश्रम में ही, बड़े समारोह के साथ उन दोनों का लग्न कर दिया ।
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