Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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गांगेय की भीष्म-प्रतिज्ञा sidesdesesssessededesejsedesisesesesededesesedhekestendesistant-sidededissetestdesesededesesasles
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"वत्स ! तुम अपने पिता के साथ जाओ । इनकी आज्ञा का पालन करते हुए मुख से रहो । धर्म को मन से कभी दूर मत होने देना । मैं अब अपनी आत्मा का उत्थान करने के लिए प्रव्रज्या ग्रहण करूंगी।"
पुत्र को मातृवियोग का आघात लगा और शान्तनु को प्राप्त हर्ष में पुनः विषाद की ठेस लगी। शान्तनु और गांगेय ने गंगादेवी को बहुत समझाया, किन्तु उसकी विरक्ति ठोस थी । वह विचलित नहीं हुई । अंत में राजा शान्तनु को विवश हो कर अनुमति देनी पड़ी । वह पुत्र को साथ ले कर राजधानी की और चला गया।
गांगेय की भीष्म-प्रतिज्ञा
एकबार महाराजा शान्तनु वनचर्या करते हुए यमुना नदी के तीर पर आ पहुँचे । वे सरिता की शोभा देख रहे थे । नदी में नौकाएं तैर कर लोगों को एक तीर से दूसरे तीर पर ले जा रही थी। उनकी दृष्टि सन्यवती पर पड़ी और उसी पर अटक गई । वे उसके रूप यौवन लावण्य एवं कान्ति देख कर स्तमित रह गए । उनका मोह प्रबल हुआ । वे उसके निकट आये और पूछा
"शुभे ! तुम किसकी पुत्री हो? तुम्हारा शुभ नाम और परिचय क्या है ?" "महानुभाव ! में नाविकों के नायक की पुत्री हूँ। मेरा नाम सत्यवती है।" "लगता है कि अभी तुम्हारा विवाह नहीं हुआ।" "मैं अपने माता-पिता की पुत्री ही हूँ।" "तुम मुझे अपनी नौका में बिठा कर उस पार ले चलोगी?"
ती। अपने मनोरंजन के लिए नौका-विहार कर लेती हूँ। मेरे पिता आपको पार पहुंचा देंगे।"
"तुम्हारे पिता कहाँ ?" ___ सत्यवती ने अपने पिता को बुलाया । केवट आया और राजेन्द्र का अभिवादन करता हुआ बोला
"पृथ्वीनाथ ! आज इस गरीब के घर यह सोने का सूरज कैसे उदय हो गया ? मेरी छाती हर्ष को नहीं संभाल रही है--प्रभो ! दास अनुग्रहित हुआ । आज्ञा कीजिए स्वामिन् ! सेवा का लाभ प्रदान कीजिए।"-केवट अत्यधिक नम्र हो कर बोला ।
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