Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सोतिया-डाह
से पूछा--"मेरे पुत्र होगा ?" महात्मा ने कहा--"तेरे कृष्ण जैसा पराक्रमी पुत्र होगा।" सत्यभामा वहाँ पहुँची। उसने समझा-मुनि ने मेरे पूत्र होने का कहा है ।" मुनि के लौट जाने के बाद सत्यभामा ने रुक्मिणी से कहा--"मुनि के कथनानुसार मेरे पुत्र होगा। वह अपने पिता जैसा पराक्रमी होगा।" रुक्मिणी ने कहा--"महात्मा ने मेरे प्रश्न का उत्तर दिया हैं। आप अपने लिए माने, तो आपकी इच्छा।" दोनों अपनी-अपनी बात पर बल देती हुई श्रीकृष्ण के पास आई। उस समय सत्यभामा का भाई दुर्योधन भी वहां आया हुआ था । बात-बात में सत्यभामा ने भाई से कहा--"मेरे पुत्र होगा, वह तुम्हारा जामाता होगा ।" रुक्मिणी ने भी ऐसा ही कहा, तब दुर्योधन ने कहा,-"तुम दोनों में से जिसके पुत्र होगा, उसे में अपनी पुत्री दे दूंगा।" सत्यभामा ने तमक कर कहा
“जिसके पुत्र का लग्न पहले हो,उसके विवाह में दूसरी को अपने मस्तक के बाल कटवा कर देने होंगे । हम यह दांव (शर्त) लगाती हैं। इसमें हमारे पति, ज्येष्ठ और भाई दुर्योधन साक्षी और जामीन रहेंगे।" दोनों ने इस दाँव को स्वीकार किया।
__ कुछ काल बीतने पर रात्रि के समय रुक्मिणी ने स्वप्न देखा । उसने अपने को 'श्वेत वृषभ के ऊपर रहे हुए विमान में बैठी हुई' अनुभव किया। जाग्रत हो कर वह पति के पास आई और स्वप्न सुनाया। कृष्ण ने कहा--"तुम्हारे विश्व में अद्वितीय ऐसा पुत्र होगा।" स्वप्न की बात, वहाँ सेवा में उपस्थित दासी ने सुनी । दासी ने जा कर सत्यभामा को कह सुनाई। सत्यभामा ने--'मैं पीछे नहीं रह जाऊँ'--इस विचार से उठी और पति के पास पहुँच कर एक मनःकल्पित स्वप्न सुनाया-"मैंने स्वप्न में ऐरावत हाथी देखा है।" कृष्ण ने सत्यभामा की मुखाकृति देख कर जान लिया कि इसकी बात में तथ्य नहीं है। फिर भी उसे प्रसन्न रखने से लिए कहा--"तुम्हारे एक उत्तम पुत्र का जन्म होगा।"
महाशुक्र देवलोक से च्यव कर एक महद्धिक देव रुक्मिणी के गर्भ में उत्पन्न हआ और देवयोग से सत्यभामा के भी गर्भ रहा। रुक्मिणी के गर्भ में उत्तम जीव आया था, इसलिए उसका उदर उतना नहीं बढ़ा, परंतु सत्यभामा का पेट बढ़ने लगा । रुक्मिणी के पेट से अपने पेट की तुलना करके सत्यभामा ने कृष्ण से कहा--"आपकी प्रिया ने आपको झठ ही कहा था । यदि उसके भी गर्भ रहता, तो मेरे समान उसका भी पेट बढ़ता । पेट में रहा हुआ गर्भ, कहीं छुपा रह सकता है ?" उसी समय एक दासी ने आ कर बधाई देते हुए कहा--"बधाई है--महाराज ! महारानी रुक्मिणी देवी ने एक सुन्दर और स्वर्ण के समान कान्ति वाले पुत्र को जन्म दिया है । महारानीजी !
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