Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कर चरित्र
कृष्ण ने रुक्मिणी के भवन में अन्य सभी का प्रवेश निषिद्ध कर दिया । एकदिन सत्यभामा ने कहा--"आपकी नई रानी को हमें नहीं दिखाएंगे ?" कृष्ण ने कहा-- "अवश्य दिखाऊंगा।" उन्होंने नीलोद्यान स्थित श्रीदेवी के मन्दिर में से, गुप्त रूप से देवी की प्रतिमा हटा दी और निपुण कलाकारों से श्रीदेवी का चित्रपट तैयार करवा कर लगाया। इसके बाद उन्होंने रुक्मिणी को चित्रपट के पीछे बिठा कर कहा-" यहाँ मेरी अन्य रानियें आएगी, उस समय तुम मौन एवं निश्चल रहना ।" इसके बाद कृष्ण, सत्यभामा के भवन में गए । पति को देखते ही सत्यभामा ने कहा--
___"आपकी नयी प्राणवल्लभा को कब तक छुपाये रखेंगे ? क्या हमारी नजर लगने का डर है-आपको ?" ..
__ " आपसे कैसा छुपाना ? आप जब चाहें, तब देख सकती है, मिल सकती हैं और अपना स्नेहदान कर सकती हैं । आप तो सब में ज्येष्ठ हैं"--कृष्ण ने हँसते हुए व्यंग में कहा।
"ज्येष्ठता और श्रेष्ठता में बहुत अन्तर होता है--स्वामिन्"-सत्यभामा ने हृदयस्थ वेदना व्यक्त की। .
- "आप ऐसा क्यों सोचती हैं ? आप में ज्येष्ठता और श्रेष्ठता दोनों हैं । आप-से छुपाना कैसा ? चलिये आप सभी चलिये--नीलोद्यान में । वहीं आप उनसे मिलिये । वे भी आपसे मिलने के लिये उत्सुक हैं।" .
___ सत्यमामा अपनी सपत्नियों के साथ उद्यान में गई । श्रीदेवी के मन्दिर में जा कर उन्होंने देवी को प्रणाम किया और प्रार्थना की कि-" हे माता ! कृपा कर मुझे ऐसा रूप दो कि जिससे मैं अपनी नयी सोत से भी श्रेष्ठ लगूं । यदि ऐसा हुआ, तो में आपकी महापूजा करूंगी।" - देवी के दर्शन कर के सभी रानियाँ कृष्ण के समीप आई। सत्यभामा ने पूछा--
“कहाँ है आपकी नई रानी ?" कृष्ण ने कहा-" अरे, आपने नहीं दे वी ? वहीं तो है, चलिये में मिलाऊँ"--कह कर कृष्ण, उन सभी को मन्दिर में ले गए। उसी समय रुक्मिणी प्रकट हो कर सामने आई और पति से पूछा--" में किन महाभागा का प्रणाम करूँ ?" कृष्ण ने सत्यभामा की ओर संकेत किया । तब सत्यभामा बोली
___ “अब ये मुझे क्या नमस्कार करेगी। आपकी कृपा से इसने मुझ-से पहले ही अपने चरणों में नमस्कार करवा लिया है। आप भी यही चाहते थे।" .. --"अरे, आप छोटा मन क्यों करती हैं ? यह तो आपकी बहिन हैं"-कृष्ण ने
रूंगी।"
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