Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
३७८
- तीर्थकर चरित्र
लोगों की चर्चा सुन कर कंस बोला;--
"इन ग्वाल-बालकों को मैने नहीं बुलाया, ये क्यों आये यहाँ ? कौन लाया इन्हें यहाँ ? ये गाय का दूध पी-पी कर उन्मत्त हो गए हैं और अपने-आपको महाभुज मानते हैं । ये अपनी इच्छा से ही मल्ल-युद्ध करने आये हैं, तो ये जाने । मैं इन्हें क्यों रोकू ? यदि इनकी किशोर-वय और युद्ध का दुष्परिणाम देख कर, किसी को इनकी पीड़ा होती हो, तो वे मेरे सामने उपस्थित होवें । मैं देखता हूँ कि इन उद्दण्डों के कौन साथी हैं।"
___ कंस के कठोर वचनों ने सब को चुप कर दिया। कंस के दुर्वचनों के उत्तर में कृष्ण ने कहा--
“यह चाणूर मल्ल तो राज-पिण्ड से पुष्ट हो कर हाथी के समान मोटा और तगड़ा हुआ है । मल्ल-युद्ध के सतत अभ्यास से प्रचुर शक्ति सम्पन्न एवं समर्थ है और में गाय का दूध पी कर जीने वाला किशोर हूँ किन्तु जिस प्रकार सिंह-शिशु मस्त हाथी का मस्तक तोड़ कर मृत्यु की नींद सुला देता हैं, उसी प्रकार में भी इसका गर्व चूर्ण-विचूर्ण कर दूंगा । आप सभी लोग शान्ति से देखते रहें।"
कृष्ण के ऐसे गंभीर और सशक्त वचन सुन कर कंस के अन्तर में आघात लगा। वह डरा । उसे अपने बलिष्ठ रुद्रवत् भयानक वृषभ, अश्व और हाथियों के संहार का दृश्य दिखाई दिया, जैसे नियति से उसे ऐसे ही परिणाम का संकेत मिल रहा हो । वह संभला और दूसरे मल्ल को भी उसने संकेत कर के अखाड़े में उतारा । मुष्टिक मल्ल को भी चाणूर का सहयोगी बन कर आया देख कर, बलराम उठे और अखाड़े में आये। कृष्ण और चाणूर तथा बलराम और मुष्टिक भिड़ गए। उनके चरणन्यास से पृथ्वी कम्पायमान हुई । करस्फोट से दर्शकों के कानों के पर्दे फटने लगे। उनकी धन-गर्जना-सी हुंकार से दिशाएं कांपने लगी। दोनों बन्धुओं ने दोनों मल्लों को घास के पूले के समान आकाश में उछाल दिया। यह देख कर दर्शकों ने हर्ष-ध्वनि की। मल्ल संभले और छल से अपने प्रतिद्वंद्वी को कमर से पकड़ कर उछाला, दर्शक चिन्तित हो गए । कृष्ण ने चाणूर की छाती पर मुक्के का ऐसा प्रहार किया कि वह विचलित हो गया । उसने सावधान हो कर कृष्ण की छाती पर वज्र के समान मुष्टि प्रहार किया, जिससे कृष्ण को चक्कर आया और वे मूच्छित हो कर गिर पड़े। उनके गिरते ही कंस ने चाणूर को संकेत कर के गिरे हुए कृष्ण को मार डालने का निर्देश दिया। चाणूर कृष्ण की ओर बढ़ा । चाणूर का दुष्ट आशय जान कर बलराम ने उस पर मुक्के का ऐसा प्रहार किया कि वह कितनी ही दूर पीछे खिसक गया। इतने में कृष्ण भी सँभल कर उठ-खड़े हुए और चाणूर को ललकारा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org