Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
पूर्वक पूछा - " भगवन् ! इस विपत्ति का अन्त कब होगा ?" महात्मा ने कहा" निर्भय रहो। तुम्हारा पुत्र अरिष्टनेमि त्रिलोक पूज्य बाईसवाँ तीर्थङ्कर होगा और राम-कृष्ण, बलदेव - वासुदेव होंगे । ये देव-निर्मित द्वारिका नगरी बसा कर रहेंगे और जरासंध को मार कर अर्ध-भरत क्षेत्र के स्वामी होंगे ।"
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महात्मा की भविष्यवाणी से समुद्रविजयजी आदि अत्यंत हर्षित हुए । महात्मा प्रस्थान कर गए और यादव-संघ भी चलता हुआ सौराष्ट्र देश में रेवतक ( गिरनार ) गिरि की वायव्य दिशा की ओ पड़ाव डाल कर ठहरा । यहाँ कृष्ण की रानी सत्यभामा के पुत्र-युगल का जन्म हुआ । इनकी कांति शुद्ध स्वर्ण के समान थी । इनके नाम भानु और भामर दिये गए ।
ज्योतिषी के निर्देशानुसार लवणाधिष्ठित सुस्थित देव की आराधना करने के लिए कृष्ण ने तेला किया। तेले के पूर के दिन सुस्थित देव उपस्थित हुआ और आकाश रहा हुआ कृष्ण से आदरपूर्वक पूछा -- “ कहिये, क्या सेवा करूँ ?” कृष्ण कहा"हे देव ! पूर्व के वासुदेव की जो द्वारिका नगरी थी, वह तो जल मग्न हो गई । अब मेरे लिए नगर बसाने का कोई योग्य स्थान बताओ ।"
देव ने स्थान बताया और कृष्ण को पंचजन्य शंख, बलदेव को सुघोष नामक शंख, दिव्य रत्नमाला और वस्त्र प्रदान कर चला गया । देव ने इन्द्र के सामने उपस्थित होकर कृष्ण सम्बन्धी निवेदन किया । इन्द्र की आज्ञा से धनपति कुबेर ने बारह योजन लम्बी और नो योजन चौड़ी नगरी का निर्माण किया । वह नगरी स्वर्ण के प्रकोट से सुरक्षित बनी । प्रकोट के कंगुरे विविध प्रकार की मणियों से सुशोभित थे। उसमें सभी प्रकार की सुख-सुविधा थी । विशाल भवन, अन्तःपुर, आमोद-प्रमोद और खेल-कूद के स्थान, बाजार, हाटे, दुकानें, सभागृह, नाट्यगृह, अखाड़े, अश्वशाला, गजशाला, रथशाला, शस्त्रागार, और जलाशय आदि सभी प्रकार की सुन्दरतम व्यवस्था उस नगरी में निर्मित की गई । वन, उद्यान, बाग-बगीचे, पुष्करणियें आदि से नगरी का बाह्य भाग भी सुशोभित किया गया । यह नगरी इस पृथ्वी पर इन्द्रीपुरी के समान अलौकिक एवं आल्हादकारी थी । देव ने एक ही रात्रि में इसका निर्माण किया था । इसकी पूर्व दिशा में रैवतगिरि, दक्षिण में माल्यवान् पर्वत, पश्चिम में सौमनस और उत्तर में गन्धमादन पर्वत था ।
प्रातःकाल होते ही देव, कृष्ण के समीप उपस्थित हुआ और दो पिताम्बर, नक्षत्रमाला, हार, मुकुट, कौस्तुभ महामणि, शार्जंग धनुष, अक्षयबाणों से भरे हुए तूणीर, नन्दक खङ्ग, कौमुदी गदा और गरूड़ ध्वज रथ भेंट में दिये और बलराम को वनमाला, मूसल,
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