Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीपंकर परित्र
सामान्य राजाओं के वश की बात नहीं है । इसलिए तुम स्वयं जाओ । यदि तुमने उसे मार डाला, तो रोहिणी तुम्हें मिल जायगी।"
"मैं युद्ध करूँगा, किंतु रोहिणी मेरे लिए ग्राह्य नहीं रही । अब वह परस्त्री हो चुकी और मेरे परस्त्री को ग्रहण करने का त्याग है।"
समुद्रविजयजी, वसुदेव के साथ युद्ध करने लगे । बहुत काल तक विविध प्रकार से आश्चर्यकारी युद्ध होता रहा ! वसुदेव के पराक्रम को देख कर समुद्रविजयजा अपनी विजय में शंका करने लगे। उन्होंने सोचा-" यह कोई विशिष्ट एवं समर्थ पुरुष है । इसे किस ढंग से पराजित किया जाय"--सोच-विचार में उनकी युद्ध की गति मन्द हो गई । वसुदेवजी, अपने ज्येष्ठ-भ्राता की स्थिति समझ गए । उन्होंने एक बाण पर लिखा--
___“कपटपूर्वक आपसे पृथक हो कर निकल जाने वाला आपका कनिष्ट-भ्राता वसुदेव का नमस्कार स्वीकार करें।"
वह बाण समुद्रविजयजी के चरणों में गिरा । समुद्रविजयजी ने बाण उठा कर देखा। उस पर अंकित अक्षर पढ़ते ही उनके हर्ष का पार नहीं रहा । तत्काल शस्त्र फेंकते हुए वे वसुदेव की ओर दौड़े । वसुदेव ने समुद्रविजयजी को अपनी ओर-"वत्स-वत्स"-- पुकारते हुए आते देख कर, रथ पर से कूद कर समुद्रविजयजी की ओर दौड़े और उनके चरणों में पड़े । समुद्रविजयजी ने वसुदेवजी को उठा कर आलिंगन-बद्ध कर दिया। कुछ समय दोनों इसी प्रकार गुंथे रहे, फिर पृथक् होते ही समुद्रविजयजी ने पूछा ;--
"वत्स ! तू मुझे छोड़ कर क्यों चला गया और लगभग सौ वर्ष तक तू कहां
रहा?"
वसुदेव ने समस्त वृत्तांत सुनाया। वसुदेव के पराक्रम स समुद्रविजयजी को जितना हर्ष हुआ, उतना ही हर्ष रुधिर नरेश को, अपने अज्ञात जामाता का पराक्रम और कुलशील जान कर हुआ। जरासंध का कोप भी यह जान कर दूर हो गया कि यह अनुपम वीर, मेरे ही सामन्त का भाई है-अपना ही है । सभी राजा मिलझुल कर एक हो गए और शुभ मुहूर्त में वसुदेवजी का रोहिणी के साथ विवाह हो गया। अन्य सभी राजाओं को आदरपूर्वक बिदा किया गया । कंस सहित यादव लोग, लगभग एक वर्ष वही रहे ।
एक दिन वसुदेव ने रोहिणी से पूछा-"तुम बड़े-बड़े राजाओं को छोड़ कर ढोली पर मोहित क्यों हो गई ?" रोहिणी ने कहा---" मेरी प्रज्ञप्ति-विद्या ने मुझे बताया कि चोर के समान वेश बदल कर दसवें दशाह स्वयंवर में आएंगे और ढोल बजा कर मुझे आकर्षित करेंगे। वस वे ही तेरे पति होंगे। मैंने पहिचान कर ढोल की पोल खोल दी।"
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