Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थङ्कर चरित्र
निर्भय रहने का आश्वासन दिया और उच्च स्वर से बोली- यदि मैं सती हूँ, तो इस बन्दी के बन्धन तत्काल टूट जायं।" इतना कहना था कि सभी बन्धन तत्काल टूट गए। लोह-शृंखला टूट कर भूमि पर गिर पड़ी। सती का जय-जयकार होने लगा । यह समाचार सुन कर राजा स्वयं वहाँ आया । उसने बन्दी को मुक्त और शृंखलाएं टूटी हई देख कर वैदर्भी से कहा
“राज्य-व्यवस्था से अपराधी दण्डित नहीं हो, तो जनता में अपराध बढ़ते जाते हैं। सुख, शांति, धर्म, नीति और सदाचार सुरक्षित रखने के लिए ही राज्य-व्यवस्था है । इममें हस्तक्षेप नहीं होना चाहिये।"
-"तात ! आपका कहना यथार्थ है । परन्तु मेरे देखते किसी मनुष्य का वध हो, तो यह मुझे ठीक नहीं लगता, फिर यह तो मेरी शरण में आया है । इसे तो अमयदान मिलना ही चाहिये। राजा ने सती का आग्रह मान कर चोर को मुक्त घोषित कर दिया। मुक्त होते ही सर्व प्रथम उसने वैदर्भी के चरणों में नमन किया। वह उसे जीवनदात्री माता मान कर प्रतिदिन प्रणाम करने आने लगा । एक दिन वैदर्भी ने उसका परिचय पूछा । उसने कहा
“मैं तापसपुर के वसंत सेठ का सेवक हूँ। मेरा नाम 'पिंगल' है । व्यसनों में लुब्ध हो कर सेठ के घर में ही मैने चोरी की और बहुत-सा धन ले कर भागा । वन में डाकू-दल ने मुझे लूट लिया और मार-पीट कर चले गए । मैं यहाँ आ कर राजा का सेवक बन गया। एक दिन राजकुमारी के रत्नाभरण की पिटारी पर मेरी दृष्टि पड़ी। मैं ललचाया और पेटी उठा कर बगल में दबाई फिर उत्तरीय वस्त्र ओढ़ कर चल दियः थोड़ी ही दूर गया हुँऊगा कि सामने से राजा आ गये । मेरे हृदय में धसका हुआ । मेर मुखाकृति देख कर राजा को सन्देह हुआ और मैं पकड़ लिया गया।"
"जब आप तापसपुर छोड़ कर चली गई, तो वसंत सेठ को गंभीर आघात लगा। उन्होंने भोजन का त्याग कर दिया। फिर नगरजनों और आचार्य यशोभद्रजी के समझाने से उन्होंने सात दिन के बाद भोजन किया । कालान्तर में वसंत सेठ, महाराजा कुबेर की सेवा में महामूल्यवान भेंट ले कर गए थे । महाराजा ने सेठ का सत्कार किया और उन्हें तापसपुर का राज्याधिकार और छत्र-चामर आदि प्रतिष्ठाचिन्ह दे कर अपना नामन्त बना लिया।"
वैदर्भी ने पिंगल से कहा; - " तुमने पूर्वभव में दुष्कर्म किये थे, उसके फलस्वरूप तुम्हारी यह दशा हुई । अब आत्म-शुद्धि के लिए तुम संसार-त्याग कर पूर्ण संयमो बन
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