Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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एक साथ पांचसो पत्नियाँ
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मनुष्यों की ताक में रहने लगा। जहां भी मनुष्य दिखाई दिया और अनुकूलता लगती, वह लपक कर पकड़ लेता और मार डालता। ऐसे नर-भक्षी मानव रूपी राक्षस को मारकर आपने हम सब का उद्धार किया है।
एक साथ पाँचसौ पत्नियाँ
आप हमारे परम उपकारी हैं । हमारा सब कुछ आप ही का है । हम अपनी पांच सौ कन्याओं को आपको अर्पण करते हैं । आप जैसे नरवीर को पा कर वे धन्य हो जायगी।"
वसुदेव ने उन कन्याओं से लग्न किया + और रात्रि वहीं व्यतीत की। प्रातःकाल चल कर अचलग्राम पहुँचे । वहाँ सार्थवाह-पुत्री मित्रश्री के साथ भी लग्न किये । वहां से वे वेदस्ताम नगर आये । वनमाला की दृष्टि वसुदेव पर पड़ते ही वह बोल उठी-"अरे देवरजी ! आप यहाँ कब आये ? चलो, घर चलें।" वे वनमाला के साथ उसके घर गए। यह वनमाला, इन्द्रशर्मा जादूगर की पत्नी थी । वनमाला के पिता ने कहा-"महाभाग! मैने ही अपने जामाता इन्द्रशर्मा को आपका हरण कर लाने के लिए भेजा था। बात यह थी कि-यहाँ के नरेश कपिलदेव की सुपुत्री कपिला के लिए आपको यहां लाना था। राजकुमारी कपिला के लिए एक महात्मा ने गिरितट ग्राम में कहा था कि-राजकुमार वसुदेव इसके पति होंगे। आपको जानने के लिए उन्होंने कहा था कि 'आपकी अश्वशाला के प्रचण्ड अश्व स्फुलिंगवदन का जो दमन करेगा, वही आपका जामाता होगा।' इन्द्रशर्मा ने राजाज्ञा से ही आपका हरण किया था। किन्तु आप बीच में से ही लौट गए। अब आप उस अश्व को अपने वश में कीजिए।" वसुदेव, कुदते-करते और दूर से ही भयानक दिखाई देने वाले अश्व के समीप बड़ी चतुराई से पहुंचे और लपक कर उस पर सवार हो गए । घोड़ा उछला, कूदा और छलांग मारने लगा । वसुदेव ने घोड़े का कान पकड़ कर मुंह अपनी ओर मोड़ा, फिर नथू ने पकड़ कर दबाया और लगाम चढ़ा कर बाहर निकाला।
+कैसा और कितना अधिक निदान कला है- वसुदेवजी को। जहाँ जावें वहाँ पत्नियाँ तयार और एक साथ सैकड़ों की संख्या में । कदाचित वसुदेवजी को भी अपनी पत्नियों की संख्या जानने के लिए हिसाब जोड़ने में कुछ समय लगाना पड़ता होगा। पुण्य का फलद्रूप वृक्ष पूर्ण रूप से फल दे रहा था उन्हें ।
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