Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र
वे तृणशोषक ग्राम में पहुँचे और एक खाली घर देख कर सो गए । रात को वहाँ सोदास नाम का नर-राक्षस आया और उन्हें उठाने लगा। वसुदेव ने उससे मल्लयुद्ध किया और नीचे गिरा कर मार डाला। प्रातःकाल, सोदास को मरा हुआ जान कर ग्राम-वासियों के हर्ष का पार नहीं रहा । वे सभी मिल कर अपने उपकारी वसुदेव कुमार का उपकार मानते हुए उत्सव मनाने लगे। वे वसुदेव को रथ में बिठा कर समारोहपूर्वक ग्राम में लाये । वसुदेव ने सोदास का वृत्तान्त पूछा । लोगों ने कहा--
"कलिंगदेश में कांचनपुर नगर के जितशत्रु राजा का यह पुत्र था। सोदास स्वभाव से ही क्रूर, निर्दय एवं मांस-लोलुप था । खास कर मयूर का मांस उसे बहुत रुचिकर था, किंतु जितशत्रु नरेश धर्म-प्रिय, अहिंसक एवं निरामिषभोजी शासक थे। पुत्र की मांसलोलुपता उन्हें खटकती थी, किंतु मोह के कारण विवशतापूर्वक उन्हें पुत्र की क्रूरता चला लेनी पड़ी। उसके लिए वन में से रोज एक मयूर मार कर लाया और पकाया जाने लगा। एक दिन रसोइये की असावधानी से मयूर का मांस, बिल्ला ले कर भाग गया। अब क्या किया जाय ? रसोइये ने एक मृत बालक का शव मंगवा कर उसका मांस पकाया और कमार को खिलाया। सोदास को वह बहत स्वादिष्ट और अपूर्व लगा। उसने रसोइये से पूछा--
"आज यह मांस इतना स्वादिष्ट क्यों है ?"-रसोइये ने कारण बताया। तब सोदास ने कहा--
"अब मेरे लिए मयूर के बदले रोज बालक का मांस ही बनाये करना।"
---"मैं बालक का मांस कहां से लाऊँ ? यदि मुझे बालक शव मिला करेगा, तो बना दिया करूँगा। पशु-पक्षियों को मारना जितना सहज है, उतना मनुष्य को नहीं। और महाराज को आप जानते ही हैं । इसलिए बालक के मांस की बात ही आप छोड़ दें, तो अच्छा हो"--रसोइये ने कठिनाई बतलाई ।
--"तेरे पास बालक का शव पहुँच जाया करेगा"--सोदास ने कहा ।
अब सोदास गुप्तरूप से बच्चों का हरण करवा कर मरवाने और खाने लगा। नगर में कोलाहल हुआ और अन्त में राजा को पुत्र का राक्षसी-कृत्य ज्ञात होने पर देशनिकाला दे दिया। इधर-उधर भटकता हुआ सोदास, दुर्ग में आ कर रहा। वह सदैव
बोदास नामक एक नर-राक्षस का उल्लेख इसी पुस्तक के पृ. ८१ में भी हुआ है । ये दोनों भिन्न है।
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