Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रतियोगिता में विजय और गन्धर्वसेना से लग्न
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अभी समाप्त करती हूँ।" अंगारक ने तत्काल श्यामा के दो टुकड़े कर दिये । यह देख कर वसुदेव के हृदय को आघात लगा । किन्तु तत्काल ही उन्होंने देखा कि श्यामा के शरीर के दो टुकड़े, दो श्यामा बन कर अंगारक से लड़ने लगे । अब वसुदेव समझ गये कि यह तो सब इन्द्रजाल है। उन्होंने अंगारक के मस्तक पर जोरदार प्रहार किया। उस प्रहार से पीड़ित हो कर अंगारक ने वसुदेव को छोड़ दिया, जो चम्पानगरी के बाहर के विशाल जलाशय में गिरे। वसुदेव सावधान थे । वे हंस के समान तैरते हुए बाहर निकले और शेष रात्रि सरोवर के देवालय में व्यतीत की। प्रातःकाल होने पर वे एक ब्राह्मण के साथ नगरी में आये ।
प्रतियोगिता में विजय और गन्धर्वसेना से लग्न
चम्पानगरी के चारुदत्त सेठ की गन्धर्व सेना' नाम की सुन्दर मोहक और लावण्यवती पुत्री थी। वह गान एवं वादन-कला में प्रवीण थी। उसने प्रतिज्ञा की थी कि 'जो कलाविद, मुझे संगीत-कला में जीत लेगा, वही मेरा पति होगा।' उसके रति के समान अनुपम रूप, यौवन और गुणों से आकर्षित हो कर उसे प्राप्त करने की इच्छा से कई देशीविदेशी युवक संगीत-कला का अभ्यास करने लगे थे। उस नगरी में सुग्रीव और यशोग्रीव नाम के दो संगीताचार्य रहते थे। प्रत्याशी युवक उन्हीं के पास अभ्यास करते थे और वे ही प्रतियोगिता के निर्णायक भी थे । वसुदेव भी प्रत्याशी बन कर संगीताचार्य सुग्रीव के समीप गये । उन्होंने अपना रूप एक मसखरे जैसा बना लिया था । संगीताचार्य के समीप पहुंच कर उन्होंने एक असभ्य गँवार-सा डौल करते हुए कहा;--"गुरुजी ! मैं गौतमगोत्रीय ब्राह्मण हूँ । स्कन्दिल मेरा नाम है । मैं गन्धवसेना के साथ लग्न करना चाहता हूँ। आप मुझे संगीत-कला सिखाइये।" आचार्य ने एक गँवार जैसे लटपट वेशवाले असभ्य युवक को देख कर उपेक्षा से मुंह मोड़ लिया। अभ्यास करने वाले युवक, इस अनोखे अनघड़ प्रत्याशी को देख कर हंसने लगे किन्तु वसुदेव तो वहीं जम गए और ग्राम्यजन योग्य वचनों से सहपाटियों को हँसाते हुए काल व्यतीत करने लगे । संगीताचार्य की पत्नी वसुदेव के हँसोड़पन से प्रभावित हो कर, पुत्र के तुल्य वात्सल्य भाव रखने लगी। मासिक परीक्षा का दिन आया । आचार्यपत्नी ने सुग्रीव को अपने पुत्र के वस्त्र धारण करने को दिये । वसुदेव ने अपने पास के वस्त्र और गुरु-पत्नी के दिये हुए वस्त्र पहिने और सभा
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