Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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वसुदेव के लग्न
एक यक्ष के मन्दिर में आ कर ठहरे ।
जब वसुदेवजी को भवन में नहीं देखा, तो खोज होने लगी । इतने में किसी मृतक का अग्नि-संस्कार करने के लिए श्मशान में गये लोगों ने खंभे पर लगा हुआ वह पत्र देखा और हलचल मच गई। यह आघातजनक समाचार शीघ्र महाराज समुद्रविजयजी के पास पहुँचाया गया और नगर भर में यह बात पहुँच गई कि -- ' वसुदेवजी ने अग्नि में प्रवेश कर आत्म-घात कर लिया ।' महाराज, राज्य-परिवार और सारा नगर शोक - सागर डूब गया | रुदन और आॠन्द से सारा वातावरण भर गया और वसुदेवजी की मृत्यु सम्बन्धी सभी प्रकार की उत्तर क्रियाएँ की गई ।
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वसुदेव के लग्न
वसुदेव कुमार आगे चलते हुए विजयखेट नामक नगर में पहुँचे । विजयखेट नगर के राजा सुग्रीव के श्यामा और विजयसेना नाम की दो पुत्रियाँ थी। वे सुन्दर आकर्षक एवं मोहक रूप वाली थी और कलाओं में निपुण थी । उनकी प्रतिज्ञा थी कि जो पुरुष कला-प्रतियोगिता में उन्हें जीतेगा, उन्हीं को वे पति रूप में स्वीकार करेगी । वसुदेव ने उन्हें जीत लिया और उनके साथ लग्न कर लिया। उनका जीवन सुख भोग में व्यतीत होने लगा । कालान्तर में विजयसेना पत्नी से उनके पुत्र का जन्म हुआ, जो वसुदेव के समान ही सुन्दर था । उसका नाम 'अक्रूर' रखा । कुछ काल के बाद वसुदेव अकेले वहाँ से चल निकले और एक घोर वन में पहुँच गए । प्यास से पीड़ित हो कर वे जलावर्त नाम के जलाशय के निकट आये । उधर से एक विशाल एवं मस्त हाथी दौड़ता हुआ वसुदेव के निकट आया । कुमार सँभल गए । वे इधर-उधर घूम-घूम कर चालाकी से हाथी को चक्कर दे कर दित करते रहे, फिर सिंह के समान छलांग मार कर उसकी गर्दन पर चढ़ बैठे । वसुदेव को हाथी के साथ खेलते और सवार होते, वहां रहे हुए अर्चिमाली और पवनंजय नाम के दो विद्याधरों ने देखा । वे वसुदेव को कुंजरावर्त उद्यान में ले गए। उस उद्यान में अशनिवेग नामक विद्याधर नरेश, अपने परिवार के साथ रहते थे । वसुदेव कुमार, राजा अशनिवेग के समक्ष आये और प्रणाम किया । राजा ने कुमार को आदर सहित अपने पास बिठाया । उसके श्यामा नाम की सुन्दर पुत्री थी । राजा ने श्यामा का विवाह वसुदेव के साथ कर दिया । एकबार श्यामा ने वीणा बजाने में अपनी कला का पूर्ण परि
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