Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चारुदत्त की कथा
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तैरता हुआ सात दिन में किनारे लगा। राजपुर नगर वहां से निकट ही था । उसके बाहर उद्यान में झाड़ी बहुत थी। मैं भूखा-प्यासा और समुद्र में हुई दुर्दशा से अत्यंत अशक्त था, सो उस झाड़ी में एक ओर पड़ गया। मेरे निकट ही दिनकरप्रभ नामक त्रिदण्डी सन्यासी था । वह मेरी ओर आकर्षित हुआ । उसने मेरा हाल पूछा, तो मैंने उसे अपना पूरा वृत्तान्त सुना दिया । सन्यासी मुझ पर प्रसन्न हुआ और मुझे पुत्र के समान रखने लगा।
एक दिन सन्यासी ने मुझसे कहा--"वत्स ! तू भन का इच्छुक है और धन के लिए ही इतने भयंकर कष्टों का सामना करता है । तू मेरे साथ चल । उस पर्वत पर मैं तुझे ऐसा रस दूंगा कि जिससे तू करोड़ों स्वर्ण द्रव्य बना सकेगा । तेरा समस्त दारिद्र दूर हो जायगा।" सन्यासी के वचन मुझे अमृत के समान लगे । मैं उसके साथ चल दिया और ऐसी अटवी में पहुंचा जिसमें अनेक सन्यासी रहते थे। वहां से हम पर्वत पर चढ़े । पर्वत पर एक गुफा दिखाई दी, जो अनेक प्रकार के यन्त्रों से वेष्ठित शिलाओं से युक्त थी। उस गुफा में एक बहुत ही ऊँडा कुआँ था। 'दुर्ग पाताल' उसका नाम था। त्रिदण्डी ने मन्त्रोच्चारण कर के उस गुफा का द्वार खोला
और हम दोनों ने उस में प्रवेश किया । हम उसमें रसकूप की खोज करते रहे । बहुत खोज करने के बाद हमें एक रसकूप दिखाई दिया । उसका द्वार चार हाथ लम्बा-चौड़ा
और नरक के द्वार जैसा भयंकर था। त्रिदण्डी ने मुझसे कहा;-"तू इस मंचिका पर बैठ कर, इस रसकूप में उतर जा और तुम्बी भर कर रस ले आ।" उसने एक मञ्चिका के रस्सी बांधी और मुझे बिठा कर तथा तुम्बी दे कर रसकूप में उतरा । मैं लगभग चार पुरुष प्रमाण ऊँडा उतरा कि मझे उसमें चक्कर लगाती हई मेखला (चक्र जैसी गोलाकार वस्तु) और उसके मध्य में रहा हुआ रस दिखाई दिया। मैं रस लेना ही चाहता था कि मेरे कानों में एक ध्वनि आई । मैने सुना कि कोई मुझे रस लेने का निषेध कर रहा है । मैने निषेधक से कहा
___ "में चारुदत्त नाम का व्यापारी हूँ। महात्मा त्रिदण्डी ने मुझे रस लेने के लिए इस कूप में उतारा है । तुम निषेध क्यों कर रहे हो ?"
--"भाई ! मैं खुद धनार्थी व्यापारी हूँ । उस पापात्मा त्रिदण्डी ने ही मुझे बलिदान के बकरे के समान इस कूप में डाल दिया और वह मुझे यहीं छोड़ कर चल दिया। मेरा सारा शरीर इस रस से गल गया है। मैं तो दुःखी हो ही रहा हूँ। मेरी मृत्यु निश्चित्त है और थोड़े काल में ही होने वाली है । तू इस रस के हाथ मत लगा और अपनी तूंबड़ी
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