Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
का मांस रखा और उसमें से थोड़ा-थोड़ा काट कर रानी के पास भेजने लगे। जब रानी का दोहद पूरा हो गया, तो वह इस दुरेच्छा से भयभीत हुई और अपने पति की मृत्यु जान कर स्वयं भी मरने के लिए उद्यत हुई । जब मन्त्रियों ने रानी को विश्वास दिलाया कि 'राजा जीवित है । उनका योग्य उपचार हो रहा है और वे सात दिन में ही स्वस्थ हो जावेंगे,' तो रानी को संतोष हुआ।
रानी को विश्वास हो गया कि गर्भस्थ जीव कोई दुष्टात्मा है । वह मेरे और स्वामी के लिए अनिष्टकारी है । उसने उसे नष्ट करने का प्रयत्न किया, किन्तु सफल नहीं हुई और पौषकृष्ण चतुदर्शी की रात्रि को जब चन्द्रमा मूल-नक्षत्र में आया, एक पुत्र को जन्म दिया। रानी इस बालक से भयभीत तो थी ही, इसलिए उसको हटाने के लिए एक काँसे की पेटी पहले से बनवा कर तैयार रखी थी। पुत्र का जन्म होते ही उसे उस पेटी में सुला दिया और उसके साथ अपने और राजा के नाम से अंकित दो मुद्रिका और एक पत्र रखा और कुछ रत्न रख कर दासी के द्वारा पेटी को यमुना नदी में बहा दिया और राजा को कहला दिया कि 'महारानी के गर्भ से मरा हुआ पुत्र जन्मा है।' सातवें दिन पति को स्वस्थ देख कर उसने बड़ा भारी उत्सव मनाया।
वह पेटी यमुना में बहती हुई शौर्यपुर नगरी के समीप आई । एक 'सुभद्र' नाम का व्यापारी प्रातःकाल शौच के लिए नदी पर आया, उसने नदी में बहती हुई पेटी देखी और साहस कर के बाहर निकाल ली। उसने पेटी खोल कर देखी, तो उसमें एक सद्यजात सुन्दर बालक और रत्नादि देखे । उसने पत्र खोल कर पढ़ा और आश्चर्यान्वित हुआ। फिर पेटी अपने घर ला कर बालक अपनी पत्नी इन्दुमति को दिया और पुत्रवत् पालन करने की प्रेरणा की। कांसे की पेटी में से निकलने के कारण उन्होंने बालक का नाम “कस" दिया। वे उस बालक का दूध, मधु आदि अनुकूल पदार्थों से पोषण करने लगे । कंस बड़ा होने लगा और उसका स्वभाव भी प्रकट होने लगा। वह अन्य बच्चों से झगड़ता, कलह करता और उन्हें मारता-पीटता । उन बच्चों के माता-पिता आ कर सेठ-सेठानी से कंस की दृष्टता कह कर उपालम्भ देने लगे । जब कंस दस वर्ष का हुआ और उसके उपद्रव बढ़ने लगे, तो सेठ ने उसे राज कुमार वसुदेव के पास--सेवक के रूप में रख दिया। कंस वसुदेवजी को प्रिय लगा। दोनों समान वय के थे । वसुदेव, कंस को सदैव अपने साथ ही रखने लगे । कस भी वसुदेव के साथ रह कर विद्या और कलाओं का अभ्यास करने लगा। दोनों कला-निपुण हो कर यौवन-वय को प्राप्त हुए।
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